Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 783
________________ 125 372 160 169 374 2/4 171 172 178 380 380 381 200 . 201 204 213 214 383 385 .. 222 223 386 सोहए (? सहइ) मनसि महुमह-पण/मनुषे ओं जहसु/अपजहिहि गोष्ठ-मध्ये महग्यविअ-कर०/संमानित-कर० ०फंसमहग्घविअ करअल. स्पर्श-संमानित-करतल० (पादाङगुष्ठालक्तक०) हलहलिअ (?हल्लाविअ) चुलचुलायमानाभ्यां धावित्वा० पसुत्त (अ) रुष्यति णहरंजणं (?णहरणं)/ नख-निकृन्तनं जाआए पलोअइआई (? पलोइआई) पथिकस्य मण्णु-भरिआई तुए (?तुर्वे) परिवालिआ पडिणिउत्तो गतो अणिमिसमीसोसि ०फुल्ल दुर्मति (णूति) जे मुहत्तं (? पहुत्तं) दुन्वन्ति (? गोपायन्ति) ये मुहूर्त । (?प्रभुत्वं) विआसिअ/विकासित कापि प्रिया चिअ लिक्खइ मज्झे चारित्तवंतीण मेव लिख्यते मध्ये चारित्रवतीनाम् ०णच्चिरोहिं तुम्हेहिँ 226 231 239 387 388 389 . .243 391 392 . 259 272 284 295 403 310 356 360 व हसंती

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