Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 770
________________ 112 धावs विअलिअधम्मिल्ला पखालणकवडेणं परिणाम- महुर- फलभारेहि परिरंभ -विसारि-त्थणआ पपिए का कुवि पासे पुरओ पेरंतअम्म पाहुणिए तम्मग्गेणेव तुए पिअअं पडि वलइ मणो पिअदंसण- सुहरसमउलिआइँ पिअसहि दोवि उवा पुल्लिं कारणं अधर ( अहर ? ) पुसिआ कण्णाहरणेंद फग्गुच्छवणिद्दोसं फरस अणे इह माए बलाआ (? बलआ ) मेहनिहेणं बहु-वल्लहस्स जा होइ बहु - विवि-कणअ-रअण बहुविहितं अणा हिसामलेणं इअ अवसमंथरभमरेहिं मम वलण राया मरणाहिंतो अहिअंण अपण पहावि महिला सहस्स भरिए माणदुमपरुसपवणस्स माणगुह जाअइ मा होहि तरुणि दइए मुद्धे कवि कीर मुहपेच्छआण मुहपेच्छओ मो तस्स रअणा रक्खउ वो दरपीअत्थणस्स रक्खिज्जइ सासंकं रच्छाअरिमं (? भमिरं ) जारं रविमंडलम्मि पाआल 157.576 153..575 35.552 29.551 107.566 123b).569 150.574 68.558 135.571 116.567 55.556 32.552 70.559 151.574 - 30.551 119.568 120.568 16.549 81.561 56.556 36.553 166.577 156.575 31.552 24.550 132.570 98.564 17.549 65.558 123.a).569 167.578 2.546 147.574 63,557 GS III. 91 GS IV. 84 GS IV. 2 GS IV. 69 GS I. 72 GS II. 98 GS II. 98 GS IV. 44 Cited in Vimarsini, p. 177

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