Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology
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धावs विअलिअधम्मिल्ला पखालणकवडेणं
परिणाम- महुर- फलभारेहि परिरंभ -विसारि-त्थणआ पपिए का कुवि पासे पुरओ पेरंतअम्म पाहुणिए तम्मग्गेणेव तुए पिअअं पडि वलइ मणो पिअदंसण- सुहरसमउलिआइँ पिअसहि दोवि उवा
पुल्लिं कारणं अधर ( अहर ? ) पुसिआ कण्णाहरणेंद फग्गुच्छवणिद्दोसं
फरस अणे इह माए
बलाआ (? बलआ ) मेहनिहेणं
बहु-वल्लहस्स जा होइ बहु - विवि-कणअ-रअण बहुविहितं
अणा हिसामलेणं इअ अवसमंथरभमरेहिं
मम वलण राया
मरणाहिंतो अहिअंण अपण पहावि
महिला सहस्स भरिए
माणदुमपरुसपवणस्स
माणगुह जाअइ मा होहि तरुणि दइए
मुद्धे कवि कीर मुहपेच्छआण मुहपेच्छओ
मो तस्स रअणा
रक्खउ वो दरपीअत्थणस्स
रक्खिज्जइ सासंकं
रच्छाअरिमं (? भमिरं ) जारं रविमंडलम्मि पाआल
157.576
153..575
35.552
29.551
107.566
123b).569
150.574
68.558
135.571
116.567
55.556
32.552
70.559
151.574
- 30.551
119.568
120.568
16.549
81.561
56.556
36.553
166.577
156.575
31.552
24.550
132.570
98.564
17.549
65.558
123.a).569
167.578
2.546
147.574
63,557
GS III. 91
GS IV. 84
GS IV. 2
GS IV. 69
GS I. 72
GS II. 98
GS II. 98
GS IV. 44
Cited in Vimarsini, p. 177

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