Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology

Previous | Next

Page 771
________________ रिउणो संपत्तिसमूहि काल आण पुत्तअ वसंत लच्छी दुहिआ जामाउआ बीओ अंगणमाहवीण वच्च मह चिचअ एक्काए arrafer विअत्यसि वल्लढवण ववसाअ-रइ-पओसो वाणिअअ हत्थिदंता विअडपअबंधबंघव विष्णाण मअविसं विप्रवण (? अण) सोहं विसs परिपथ (? पडिप्पह) पत्थिअ विसमम्मि (वि) अविसण्णो विसमासु समरसीमासु सअसोअरो (? सरसोअरो) वि ण समो संकेओ अमणओ स च्चि सच्चं जाणइ बठ्ठे संजीवणीसह विअ संणिहि भुजंगाओ वि संपत्तिआ वि खज्जइ सरलाण पअइ-कढिणा सह-स सामाइ सामलिज्जइ सामी पिसुवित्त / विमुक्को अणो ण कुous fear सुकअं च परिभोगाण अविलंब अं सूरच्छलेण पुत्तय (? पुत्तिय ) 69.559 42.554 66.558 102.565 45.554 95.563 49.555 23.350 106.566 41.554 73.559 74.560 117.568 158.576 12.548 109.566 40.553 160.576 76.560 96.564 99.564 82.561 91.563 39.553 144.573 37.553 126.569 77.560 48.555 139.572 GS IV. 11 Cited in DHV III, (pp. 463-464) GS IV. 22 Cited in DHV I, (p. 73) GS V. 78 Setu I. 14; cited in SK IV. v. 29, (p. 416) Cited in DHV III, p. 299 Cited in Vimarsini (p. 174 ) GS I. 12 GS IV. 36 KM II. 1 GS II. 80 GS III. 50 39 113 Cited in A'sarvasva, p. 147 GS IV. 32

Loading...

Page Navigation
1 ... 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790