Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology
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कर्णालीना
उल्लसइ (? उल्ललइ) णहरणं चंदिलस्स उल्लसति (? उल्ललति ) नख - निकृन्तनं नापितस्य
(? कुइआणुणिआ ) / कुपितानुनीता
o गन्धवहः
(? छिक्को / छित्तो )
This gāthā, when corrected, agrees with GS IV, 81
कप्पवणे (? कंपि मणे ) / कामपि मन्ये
अंह ( ? अहं / दूसह ) / अस्माकं / दु:सह
० विवरणे (? विस्रंसने )
एव स्फुरफुरायन्ते
मरणे ण पुण्णअं मह/मरणे न पुण्यं मम स्थगयिष्यामि
हस्तौ कम्पेते
० मई, वि गईण परंमुहो / ० मयीनामपि नदीनां पराङमुखो
सच्चविओ
( ? साहसु ) तं केण मुसिओ सि/ कथय त्वं केन मुषितोऽसि
जानामि
पहा लोण ० / पथालोकन ०
पभाताअं... इहेव्व अव०
उद्भट - संतापः
०पओसेण (व) तुऍ / ० प्रदोषेणेव त्वया
० विलासिणि०
ते चिचअ
घर - गआए
Cf. GS (W) 869
सरोषं समपसरन्तीं
( ? दारुणम्मि)
रूसिउं

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