Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology
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81
सालिवणगोविआए सालोए च्चिअ सूरे
GS II. 30
GS I. 39 Vide Appendix-II
(HV)
GS I. 50 GS V. 40
GSI.84
साहोणे वि पिअअमे सुअवहवइअर (अपभ्रंशभाषायाम्) *सिसिर-पडिरोहमुक्कपरि सुरकुसुमेहिं कलुसि सुरहि-महु-पाण-लंपड सुहउच्छअं जणं दुल्लहं सेउल्लिअ-सव्वंगी सेलसुआरुद्धद्धं सो तुह कएण सुंदरि । सो मुद्धमओ मअतहिआ सोहइ विसुद्ध-किरणो सोह व्व लक्खणमुंह हंहो कण्णुल्लीणा हंतु विमग्गमाणो हसिअं सहत्थतालं हसिआइं समंसल-कोमलाई हसिएहि उवालंभा हा तो जोज्जल देउ (अपभ्रंशभाषायाम्) हिअअ तिरच्छीयइ ( " हिअए रोसुग्घुण्णं हुँ जिल्लज्ज समोसर हूं हुं हे/दे भणसु पुणो होतपहिअस्स जाआ.
95.359
94.358 363.413 275.396 62.352 35.347 285.398
11.341 137.367 246.389
5.340 222.385
86.357 111.362 107.361 239.388 143.368
85.356 337.408 354.411 20.343 81.356 97.359 178.375 251.390 256.391
Setu I. 22 Setu I. 48
Setu IV. 36 GS III. 63
GS VI. 13 Vide Appendix - II Vide Appendix - II Cr.GS (W)916 Cf. GS (W) 946
GS I.47
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