Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology
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विरहाणलो सहिज्जइ विरहिणि हिअअ - कअंतहि विसवेओ व्व पसरिओ
विहलs से वच्छं
सि हरिमंहि अवि (अपभ्रंश भाषायाम् )
das जस्स सविडिअं
वाहिऊण हुआ
विरसिकरं गुलि शद / हदमाणुश भंशभालके
संह अचक्कवाअजुआ अलुज्जो अव
अग्गहतं सुणा
सग्गं अपारिजाअं
सच्चं गुरुओ गिरिणो
सच्च चिट्ठ
सच्चं जाणइ दट्ठ
सच्छन्द-रमण- दंसण
संजीवणीसह मिव
समसोक्खदुक्ख समवड्ढिआण
सरले साहसरागं परिहर
* सविमो अज्जुणमिमं * संवाल्लणभउलिअविवर सव्वरसम्म विड्ढे सहसा मा साहिज्जउ सहिआहिँ अविसज्जिअ
सहिहिं भण्णमाणा
सहि सासु तेण समं साउपडी गोहि
सात सहत्थ - दिण्णं * सामण्णसुंदरीणं
276.396
87.357
119.363
299.401
64.352
375.416
7.340
248.390
25.346
3.340
117.363
286.398
103.360
141.368
303.401
269.394
357.412
278.396
262.392
29.346
36.347
68.353
197.379
169.376
300.401
69.393; 340.409
176.375
76.354
244.389
17.343
358.412
267.394
74.354
सा महइ तस्स हाउं सामाइ सामलीए
GS I.43
Vide Appendix-II
Setu V. 50
Vide Appendix - II
Setu 1. 6
GS III. 44
Veni III
Setu III. 31
GS VI. 50
Setu IV. 20
GS I. 12
Cf. GS (W) 890
GS IV. 36
GS II. 42
Malati VI. 10
GV. 240
GS III. 29
GS II. 45
Vide Appendix-II
GV 959
"
GS II. 80
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