Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 738
________________ 80 विरहाणलो सहिज्जइ विरहिणि हिअअ - कअंतहि विसवेओ व्व पसरिओ विहलs से वच्छं सि हरिमंहि अवि (अपभ्रंश भाषायाम् ) das जस्स सविडिअं वाहिऊण हुआ विरसिकरं गुलि शद / हदमाणुश भंशभालके संह अचक्कवाअजुआ अलुज्जो अव अग्गहतं सुणा सग्गं अपारिजाअं सच्चं गुरुओ गिरिणो सच्च चिट्ठ सच्चं जाणइ दट्ठ सच्छन्द-रमण- दंसण संजीवणीसह मिव समसोक्खदुक्ख समवड्ढिआण सरले साहसरागं परिहर * सविमो अज्जुणमिमं * संवाल्लणभउलिअविवर सव्वरसम्म विड्ढे सहसा मा साहिज्जउ सहिआहिँ अविसज्जिअ सहिहिं भण्णमाणा सहि सासु तेण समं साउपडी गोहि सात सहत्थ - दिण्णं * सामण्णसुंदरीणं 276.396 87.357 119.363 299.401 64.352 375.416 7.340 248.390 25.346 3.340 117.363 286.398 103.360 141.368 303.401 269.394 357.412 278.396 262.392 29.346 36.347 68.353 197.379 169.376 300.401 69.393; 340.409 176.375 76.354 244.389 17.343 358.412 267.394 74.354 सा महइ तस्स हाउं सामाइ सामलीए GS I.43 Vide Appendix-II Setu V. 50 Vide Appendix - II Setu 1. 6 GS III. 44 Veni III Setu III. 31 GS VI. 50 Setu IV. 20 GS I. 12 Cf. GS (W) 890 GS IV. 36 GS II. 42 Malati VI. 10 GV. 240 GS III. 29 GS II. 45 Vide Appendix-II GV 959 " GS II. 80

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