Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology
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धीरं व जलसमहं धीरं हरइ विसाओ
घोरेण माणभंगो
धीरेण समं जामा "घुमे हमहुअराओ
धूमाइ धूमक
अडिअ-सणेह संभाव ( ? सम्भाव ).
अपीडिअमहिसासुर
परजुआणो गामो
पंकअ पंकिवल्लिअ
पच्चूस-गय- वरुम्मूलियाऍ पच्चूसागअ-रत्त
पट्ट सुउत्तरिज्जेण
पीडिआ अ हत्थसिढिलिअ पडिउत्थिआ ण जंपइ
* पडिकम् मदूइपेसण
* पडिवक्ख-मण्णु-उंजे
पदमघरिणीअ समअं
पणअं पढमपिआ
पत्ता असीभराहअ
पनमत पनअप कुपित * पंथिअ ण एत्थ सत्थरमत्थि
परि-उदल
परं जोहा उन्हा
परिवति व णिसंसमइ (? परिवडढते
णिसासमए)
" पल्लविअं विअ करपल्लवेह
पलिच्च ले लंबदशाकपालं पवणुव्वेल्लिअसाहुल
140.367
153.370
381.417
139.367
34.347
115.363
51.350
90.357
59.352
144.368
161.372
22.343
359.412
12.341
151.370
213.383
45.349
44.349
341.409
215.383
349.410
49.350
26.346
14.342
109.361
50.350
192.378
16.342
131.365
134.366
366,414
234.387
Setu II. 14
Cf Setu V. 7
Setu I. 19
33
Setu V. 19-20
GS II. 99
Appendix-II
GS II. 97
Appendix-II
Lilavai. 1091
GS VII. 53
Setu XI. 54
Cf. GS VII. 47
GS III. 60
GS (W) 731
Setu I. 56
(Brhat-Kathāyām) GS (W) 879
KM II. 11
(HV)
Cf Vajjā. 313
39
MK VIII. 21
Cf. GS VII. 5
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