Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology
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38
माणं पुछछ (?च्छ)ह दिण्णा जस्स तुमं मामि सरिसक्खराणां मामि हिअ व पिअं (? पीअं) .
GS V.50 GS III. 45
मा मुअरिपरिहास ( ?) मारेसि कण्ण (? कं ण) मुद्धे मा वच्च पुप्फलाविर . मुद्धत्तणेण वहुआ
258.97 492.143 381.121 548.153 714.181 794.194 395.181 389.122 770.191 340.113 787.193 232.91
GS VI. 4 GS. IV 55
GS VII. 78
GS IV, 33
GS IV. 68 GS V. 59 GS II. 40
मु. धे अपत्तिअ० ती ( = मुद्धे अपत्तिअंती) मुहविज्झविअपईवं मोहेइ वीअंभणणमि म्हरिमो ( = भरिमो) से सअणपरं रइविरमलज्जिआए (?ओ) रच्छापइण ? पइण्ण) णअणुप्पला रत्तिं णिद्दअरमिओ रमिऊण परं वि ( ? पि) गओ रुड ढंतीए ( ? भंडतीए) तणाइंसोउं (?) रुअं सिळं चिअ से रे हु गुडिअडविअंभण (?) लज्जा छ (?च) ता सोलं लज्जाविसंठुलाए लीळावेळक्खविळास लोओ जूरइ जूरउ
736.185 649.170 579.158 330.111 361.117 697.178 603.162 435.132 318.108 666.173 715.181 354.116 639.169 525.149 563.155 436.132 349.115
GS I. 98 GS IV.79 GS VI. 73
GS VI. 24
GS VI. 29
GS III. 57
वइविवरणिग्गअदलो वउणेउपलंतसीस (? वअणे ( वअणे ) अ चलंत) वनसिअ (? पसिअ) पिए का कुविआ वरकित्तणवलिअपरंमुही वरगोत्तुंगीआअण्णणेण (?)
GS IV. 84
250.95 331.111 316.108
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