Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 715
________________ GS V. 87 तुह विरहुज्जुग्गिरओ तुह सुंदरि घरकुटुं ते अगलि (? हि) ओवएसा तेण इरु (? इर) णवलआए 918:215 1638.336 1385.295 1496.313 Setu XI. 98 GS I. 28; Cf. SK (p. 636) GS IV. 75 Vide Appendix - I Setu XI. 106 (HV) Setu XI. 100 Setu XI. 111 1033.234 1344.288 1388.296 1082.242 1577.327 1382.295 1014.231 1395.297 1030.234 1389.296 1220.266 1399.298 1230.268 1579.327 1643.336 1507.315 1378.294 1468.309 Setu XI. 65 तेण ण मरामि मण्णूहि ते पुच्चि (?च्छि)ज्ज हिवत्तउ तो अडिअपेळ = तो फुडिअवेणीबंधण तो इअ पिआणुवत्तण (?) तो इअ सुरअरुकारण (?) तो जण्णिउं (?जंपिउं) पउत्ता तो णि णिअपेम्मपडिपसाअ (?) तो ती (तं? ) ठूण पुणो . तो धालज्जापणआ भणइ (?) तो मुच्छिउट्ठिआए तोलअमाणरहेहिणि (?) तो विलविअ णिच्चामं (?णित्थाम) तो से कुम्भंतच्छि अहिअ (?) तो से रुभंतच्छिअ (?) तो से विअम्मि रसिआ (?) थणवटु च्चिअ कलंबरेणु थण-परिणाहे त्थइए (?) थो पि ण णीसरह थोआरुढ-महुमआ थोरि (रं?) सुएहि रुण्णं थोवोसरंतरोसं दइअ गमिअ ० वणवादि ? दइअस्स गिम्म (गिम्ह) वम्मह दइआलोअपअत्ता दटुं चिरंण लद्धो ठूण उण्णमंते मेहे दणूण चिरं रोत्तुं णिन्भरं दलूंण त०लवाणं (? तंजुवाणं) Setu XI. 86 (HV) (HV) Setu XI. 58 GS I. 49 SK p. 67 GS VI. 28 (HV) 1609.332 1154.254 1593.329 1035.235 1467.309 1231.268. 876.208 1324.285 .. 1366.292 GS VI. 38 804.195.. Vajja. 617

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