Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology
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दरत्तमपत्तले हो दारट्ठविअसुरदुमं दारद्दविअ...
दावते तुह मुहं
दिअरस्स सरसमउर
दिअरेण पिआथए
दिअरो वहुत्तिआए दिट्ठम्मि घरपरोहड
दिढमण्णु मिआए
दिण्णतणूअं जणाई ( ? )
दोपाअवपिंजरिआ
दीससि पिआइ जंपसि दण्णासा
दुक्तमहं दुईसा दुहाओ इ ण एइ चंदो पि
दूइ तुमं विअ ( ? चिअ ) णिउणा
दुई
चिराइ
अंदलोइरिए
मे
दूरगअ ०पि णिअण्तै ?
दूर अम्मिणिअत्तलदूर ?
दूरपडिबद्धराए दूरविभिअवसरो
दूसहकआवराहं
हमंतु तो ( ? अत्तो) as got परिणमोही देवसमणामित्त airat अपसरिओ दोहं चिअ हिअअरंविआ ?
1541.321
1251.272
1633.35
1142 252
1513.317
1518.317
1511.316
845.202
1224.267
1569.326
1539.321
1484.312
1177.258
1314.284
1043.236
921.215
958.222
941.219
1553.323
940.219
952.221
1003.230
1100.245
1586.328
1451.307
1636.335
1134.251
1585.328
1145,253
1349.289
1459.308
1221.266
1083.242
(HV)
"
GS (W) 920
Cf. SK p. 669
GS I. 74
GS V. 89
GS (W: 843
Ratnā II. 1
GS (W) 854
GS II .81
GS (W) 855
GS (W) 858
Cf. SK P 453

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