Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 716
________________ 58 दरत्तमपत्तले हो दारट्ठविअसुरदुमं दारद्दविअ... दावते तुह मुहं दिअरस्स सरसमउर दिअरेण पिआथए दिअरो वहुत्तिआए दिट्ठम्मि घरपरोहड दिढमण्णु मिआए दिण्णतणूअं जणाई ( ? ) दोपाअवपिंजरिआ दीससि पिआइ जंपसि दण्णासा दुक्तमहं दुईसा दुहाओ इ ण एइ चंदो पि दूइ तुमं विअ ( ? चिअ ) णिउणा दुई चिराइ अंदलोइरिए मे दूरगअ ०पि णिअण्तै ? दूर अम्मिणिअत्तलदूर ? दूरपडिबद्धराए दूरविभिअवसरो दूसहकआवराहं हमंतु तो ( ? अत्तो) as got परिणमोही देवसमणामित्त airat अपसरिओ दोहं चिअ हिअअरंविआ ? 1541.321 1251.272 1633.35 1142 252 1513.317 1518.317 1511.316 845.202 1224.267 1569.326 1539.321 1484.312 1177.258 1314.284 1043.236 921.215 958.222 941.219 1553.323 940.219 952.221 1003.230 1100.245 1586.328 1451.307 1636.335 1134.251 1585.328 1145,253 1349.289 1459.308 1221.266 1083.242 (HV) " GS (W) 920 Cf. SK p. 669 GS I. 74 GS V. 89 GS (W: 843 Ratnā II. 1 GS (W) 854 GS II .81 GS (W) 855 GS (W) 858 Cf. SK P 453

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