Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 700
________________ 42 Prakrit Verses In Śrngaraprakasa (Contd) (Vol. IV: pp. 195-338) अंगण आरअ अंधार चिवइ चुएइ (? अग्घाइ छिवइ चुंबई ) अंतत्तु ( ० हुत्तं ) धज्जइ ( ? डज्झइ ) तो हुतं उज्झइ जाओ अंदोलणलंघि अवइसिहाए अंवो ( अव्वो) दुक्करआरअ अइओ०चिएव ? अइकोवणा वि सासू अइ चंडि किंण पेच्छसि अपत्यंभि ? अहराए ( अ ) रहुतणओ अइरा दंसिहिसु (? सि) तुमं अकअण्णुअ तुज्झ कए rise fare ? वि अखंड अणए ? अणुओ ? अहिअदइआणुणओ ? अग्घइ गोत्तक्खलणे ? अग्घइ वलंत (गलंत ) धीरं ? अ० चंताअण्णजणोहि ( ? अच्छउ ता अण्णाजणो ) अ० चीइ (? अच्छीइ ) ता ढक्किस्सं अ० चोडिअ व० त्थद्धं ( ? अच्छोडिअवत्थद्वंत) अच्चक्ख (अत्थक्क) रूसणं अच्चले धणुओ सह ( अपभ्रंश भाषायाम् ) 871.206 1307.283 826.199 1365.291 1365 1529.319 1254.273 1156.255 1278.277 1129.250 1040.235 1402.299 1401.298 1140.252 1093.244 1576.327 1237.270 1612.332 1141.252 1604.331 1233.269 1205.263 1036,235 1608.332 1340.288 GS IV. 48 GS VII. 39 GS IV. 73 Cf. SK p. 631 Cf. SK p.664 GS III. 73 GS V. 93 Cf. GS (W) 908 Cf. GS (W) 924 Setu XI. 124 Setu XI. 92 GS V. 45 GS II. 60 GS VII. 75 Vide Appendix-I

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