Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology
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Prakrit Verses In Śrngaraprakasa (Contd)
(Vol. IV: pp. 195-338)
अंगण
आरअ
अंधार चिवइ चुएइ (? अग्घाइ छिवइ
चुंबई )
अंतत्तु ( ० हुत्तं ) धज्जइ ( ? डज्झइ ) तो हुतं उज्झइ जाओ
अंदोलणलंघि अवइसिहाए अंवो ( अव्वो) दुक्करआरअ
अइओ०चिएव ? अइकोवणा वि सासू अइ चंडि किंण पेच्छसि
अपत्यंभि ? अहराए ( अ ) रहुतणओ अइरा दंसिहिसु (? सि) तुमं
अकअण्णुअ तुज्झ कए rise fare ? वि अखंड अणए ?
अणुओ ?
अहिअदइआणुणओ ? अग्घइ गोत्तक्खलणे ?
अग्घइ वलंत (गलंत ) धीरं ? अ० चंताअण्णजणोहि ( ? अच्छउ ता अण्णाजणो )
अ० चीइ (? अच्छीइ ) ता ढक्किस्सं अ० चोडिअ व० त्थद्धं ( ? अच्छोडिअवत्थद्वंत)
अच्चक्ख (अत्थक्क) रूसणं
अच्चले धणुओ सह
( अपभ्रंश भाषायाम् )
871.206
1307.283
826.199
1365.291
1365
1529.319
1254.273
1156.255
1278.277
1129.250
1040.235
1402.299
1401.298
1140.252
1093.244
1576.327
1237.270
1612.332
1141.252
1604.331
1233.269
1205.263
1036,235
1608.332
1340.288
GS IV. 48
GS VII. 39
GS IV. 73
Cf. SK p. 631
Cf. SK p.664
GS III. 73
GS V. 93
Cf. GS (W) 908
Cf. GS (W) 924
Setu XI. 124
Setu XI. 92
GS V. 45
GS II. 60
GS VII. 75
Vide Appendix-I
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