Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology
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तहिं पि सद्धा v. no. 1258 केली विदूसिहिइ भोगिको विदूषयिष्यति विणडिज्जइ उग्गाहिएक्क (? अतित्त) (? अतृप्त) ताम्य (? उअहुज्जति) (? उपभुज्यन्ते) णईण वि परम्महो -स्वभावायाश्च -यष्टिः चन्द्रचाण्डालः निशायन्ते . करतस्स प्रतीहि न प्रतीयां ,. वेदनातुरा अपि GS IV. 85 समाप्ताऽपि . दीर्घापाङ्ग णिम्ममेण तुङगः रुदत्यां मयि दइअ तुह पवासेण रुआवेइ मलल्लिअं (? मल-लित) जाव (हि) यावद् (हि) दिट्टे सरिसम्मि कथ्यन्ते जामाउए
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