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2
Correciion
544 558
154
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176 178 191
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792
194
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202 205 210 225 228
864 888
978
तहिं पि सद्धा v. no. 1258 केली विदूसिहिइ भोगिको विदूषयिष्यति विणडिज्जइ उग्गाहिएक्क (? अतित्त) (? अतृप्त) ताम्य (? उअहुज्जति) (? उपभुज्यन्ते) णईण वि परम्महो -स्वभावायाश्च -यष्टिः चन्द्रचाण्डालः निशायन्ते . करतस्स प्रतीहि न प्रतीयां ,. वेदनातुरा अपि GS IV. 85 समाप्ताऽपि . दीर्घापाङ्ग णिम्ममेण तुङगः रुदत्यां मयि दइअ तुह पवासेण रुआवेइ मलल्लिअं (? मल-लित) जाव (हि) यावद् (हि) दिट्टे सरिसम्मि कथ्यन्ते जामाउए
994 996
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1054 1072 1089 1175 1227 1258 1275
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