Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 608
________________ 592 54) Akurikumamacandanam...... अकुंकुममचंदणं दस- दिसा- वहू-मंडणं असेहर (पा. भे. अकंकण ) मकुंडलं भुवणमंडलीभूसणं । असोसणममोहणं मअरलंछणस्सा उहं नहअलम्मि पुंजिज्जइ ॥ मिअंक किरणावली ( अकुङ कुममचन्दनं दशदिशा- वधू- मण्डन मशेखर (मकङ्कण) मकुण्डलं अशोषणममोहनं मृगाङ्ककिरणावली 55 ) Gamiā kadambavāā....... Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics (p. 313) मकरलाञ्छन स्यायुधं नभस्तले पुञ्जीक्रियते ॥ ) 56 ) So ko vi gunāisao...... भुवनमण्डलीभूषणम् । गमिआ कलंबवा दिट्ठे मेहंधआरिअं गअणअलं । सहिओ गज्जिअ सद्दो तह वि हु से णत्थि जीविए आसंघो ॥ ( गमिताः कदम्बवाता दृष्टं मेघान्धकारितं गगनतलम् । सोढो गजितशब्दस्तथापि खल्वस्या नास्ति जीवितेऽध्यवसायः ॥ ) — Setu I. 15 S7 ) Param jonhā unhā...... — Karpuramañjari III. 26 (p. 316) सो को वि गुणाइसओ ण आणिमो मामि कुंदकलिआए । अच्छी हि चिच पाउं अहिलस्सइ जेण भसलेण ॥ ( स कोऽपि गुणातिशयो न जानीमो मातुलानि ( सखि) कुन्दकलिकायाः । अक्षिभ्यामेव पातुमभिलष्यते येन भ्रमरेण ॥ ) (p. 316) — Cf. GS VI. 91 (p. 322) परं जोन्हा उण्हा गरल - सरिसो चंदणरसो खअ क्खारो हारो रअणि-पवणा देहतवणा । मुणाली बाणाली जलइ अ जलद्दा तणुलआ वरिट्ठा जं दिट्ठा कमलवअणा दोहणअणा (? सा सुणअणा ॥ ) ( परं ज्योत्स्नोष्णा गरलसदृशश्चन्दनरसः क्षतक्षारो हारो रजनि - पवना देहतपनाः । मृणाली बाणालिज्र्ज्वलति च जलार्द्रा तनुलता वरिष्ठा यद् दृष्टा कमलवदना सा सुनयना ॥ ) — Karpuramañjari II. 11

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