Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 572
________________ 556 Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics 52) ......Visesoktih...... (p. 96, v. 287) जो जस्स विहवसारो सो तं देइ त्ति किंथ अच्छेरं। . अणहोतं पि खु दिणं दोहग्गं तइ सवत्तीणं॥ (यो यस्य विभवसारः स तं ददातीति किमत्राश्चर्यम। अभवदपि र वलु दत्तं दौर्भाग्यं त्वया सपत्नीनाम् ( = सपत्नीभ्यः)॥) -GS III. 12 53) ......Asamgatih...... (p. 96, v. 289) उअ जलहर-मालाए जत्थ च्चिअ गज्जिउग्गमो जाओ। तत्थ च्चिअ उल्लसि विज्जुम्मणिआ-सलाआहिं॥ (पश्य जलधरमालाया यत्रैव गजितोद्गमो जातः। तत्रैव उल्लसितं विद्युन्मणिशलाकाभिः॥) 54) ......Asamgatih...... (p. 97, v. 291) दलिआरि-वसा-सोणिअ-पिच्छिल-धारा-पहम्मि तुह खग्गे। अच्छरि अं समसमओ गमागमो कित्ति-लच्छीए॥ (दलितारि-वसा-शोणित-पिच्छिल-धारापथे तव खड्गे। आश्चर्य समसमयो गमागमः कीर्तिलक्षम्याः॥) 55) ...... Anyonyam...... (p. 98, y. 297) पुदुमिल्लं कार णं अधर/अहर-खंडणेणोल्लसेंति सिक्कारा। सिक्कारेहि अह अधर/अहर-खंडणं सामलंगीणं ॥ (प्राथमिक/प्रथमं कारणम् अधर-खण्डनेनोल्लसन्ति सीत्काराः। सीत्कारेभ्यः (? सीत्कारः)अथाधर-खण्डनं श्यामलाङ्गीनाम् ॥) 56) ......Anyonyam...... (p. 99, v. 299) मअ-वस-मंथर-भमरेहिं को विणा करिवरेहि विझगिरी। विझेण विणा करिणो पाविज्जति हु परीहव-सआणि ॥ (मद-वश-मन्थर-भ्रमरैः को विना करिवरैः विन्ध्यगिरीः। विन्ध्येन विना करिणः प्राप्नुवन्ति रवलु परिभव-शतानि ॥) 57) ......Anyonyam.. .. (p. 99, v. 302) सेवअ-जणस्स किं सामिणा स-माणुण्णइं हरआ। सामिणो वि विसोढ-माणभंग-लहुएण किं तेण ॥ (सेवक-जनस्य किं स्वामिना स्व-मानोन्नति हरता। स्वामिनोऽपि विसोढ-मानभङग-लघुकेन किं तेन ॥)

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