________________
स इति- यः क्षमारामया क्षमैका रामा रमणी तया रमितः रमणंः प्राप्तः स हि मुनिः मया स्तोत्रा अरं शीघ्रं प्रणतिं प्रणमनं इतः प्राप्तः । हे नर! अये मानव! अनया क्षमया अमितः मितातीतो मोक्ष भव इति यावत्। मितश्च सीमन्सहितश्च स्वर्गादिसमुद्भव इत्यर्थः कः सुखं आप्यते लभ्यते । इत्येवं जिनैरर्हद्भिः । गदितं कथितम् ।।८६ ।।।
___ अर्थ- जो क्षमारूपी रमणी से रमा गया है- उसमें निरन्तर लीन है वह मुनि मेरे द्वारा शीघ्र ही प्रणाम को प्राप्त होता है- मैं उसे सहसा प्रणाम करता हूं | हे मानव! 'इस क्षमा से मोक्ष का अपरिमित और स्वर्गादि का परिमित सुख प्राप्त होता है ऐसा जिनेन्द्र भगवन्तों ने कहा है ||८६।।
[८७] ननु निश्चयो यो नयः शिवदो न वन्द्यो न न च नयोऽनयः ।
नमः पयोजयोनय आशु नाश्यन्ते कुयोनयः ।। ननु यः निश्चयः नयः (सः) शिवदः न, वन्द्यः (च) न, नयः अनयः च न । पयोजयोनये नमः (यस्मात्) कुयोनयः आशु नाश्यन्ते ।
नन्विति- ननु परमार्थतो यो निश्चयो नयः स्वाश्रितो नयः शुद्धवस्तुस्वरूपप्रतिपादको नयः स शिवदो न मोक्षप्रदो न वन्द्यो वन्दनीयश्च न। नयेन मोक्षो न प्राप्यते, नयस्तु नयनवत्पथप्रदर्शक एव ततोऽसौ वन्दनीयो नास्ति। एवं चेद् नयो व्यर्थ इति शङ्का न विधेया। नयोनिश्चयव्यवहारभेदभिन्नो नय: अनयो न, न विद्यतेऽयः शुभावहो विधिर्यत्र सोऽनयः शुभावहविधिरहितो न, किन्तु प्रारम्भदशायां पथप्रदर्शकत्वेन कल्याणकृद् भवति । अथवाऽयं नयः सुनयः अयं च कुनय इति विकल्पो न श्रेयान्, नयातीत एव नरः स्वात्मस्वरूपं लब्धुं शक्नोति। अतो नयानयविचारं मुक्त्वा पायोनि जिनेन्द्रं नमस्करोमि यस्मात् कुयोनयो नरकादियोनयः आशु शीघ्रं नाश्यन्ते दूरीक्रियन्ते ।।८७।।
अर्थ- परमार्थ से जो निश्चयनय है वह मोक्ष को देने वाला नहीं है इसलिये वन्दनीय भी नहीं है। तात्पर्य यह है कि निश्चयनय मात्र मोक्षपथ का प्रदर्शक है मोक्षप्रदायक नहीं, मोक्ष के लिये पुरुषार्थ आत्मा को ही करना होता है। निश्चयनय मोक्ष का देने वाला नहीं है तथा वन्दनीय भी नहीं है, इसका तात्पर्य यह नहीं है कि नय व्यर्थ है।प्रारम्भिक दशा में नय अनय नहीं है कल्याणकारी विधि से रहित नहीं है, अतः सार्थक है। अथवा मैं नय और कुनय के पक्ष में न पड़कर पद्मयोनि - ब्रह्मस्वरूप आत्मा को नमस्कार करता हूँ, जिससे सब नरकादि कुयोनियाँ नष्ट होती हैं ।।८७।।
(४३)