________________
बल में बालक हूं किसलायक बोध कहां मुझ में स्वामी। . तब गुणगण की स्तुति करने से पूर्ण बनूं तम सा नामी।। गिरि से गिरती सरिता पहली पतली सी ही चलती है। किन्तु अन्त में रूप बदलती सागर में जा ढलती है।। ९९।।
रहे नीति के वीर! प्रणेता शिवपथ के जो नेता हो! नीति प्राप्त हो तुम्हे भजूं मैं सकल-तत्त्व के वेत्ता हो।। क्यों न निर्धनी करे धनिक की सेवा धन से प्रीति रही! रीति नीति हम कभी न भूलें गीत गारही नीति यही ।। १००।
समय एवं स्थान परिचय धरम व्योम गति गन्ध का वीरजयन्ती-योग। . मिला पुण्य के योग से मेटे भव-भव रोग ।।। सम्मेदाचल तीर्थ के पाद प्रान्त में बैठ।. लिखा ईसरी नगर में काव्य रहा यह श्रेष्ठ।।