Book Title: Panchshati
Author(s): Vidyasagar, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Gyanganga
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करणमोदपदार्थ रसं प्रति प / 32 करुणाभाववसत्यां सद्भिरिदं - भा / 7 कलय व्रतानि पंच - श्र/43 कांचिदिच्छां भवनतः - भा/ 65. कायेन वाचा तु गुरुः कठोरो - सु / 28 कालेन कालेन च काचनश्री : - सु/ 84 किं जितानंग! ते न ! - श्र/97 किं स्याद्भगवन्नमितं भा/15 किलविदा कमयन्ति विरागिणः - नि/ 95 कुधी सुखी नाके न ततो- श्र / 73 कुमतिभिर्दलितोऽपि सखेदितः - प / 56 कुमुदमथो वा येन - भा/24 कुरुकृपां करुणाकरकेवलम् - नि / 50 कृतकृपा निजके च्युतवासना - प / 29 कृतमदममतापचितिर्य - भा / 72 क्व सा दाहकता विना - श्र/47 क्षारतः संसारता पारावारतो - श्र/77 क्षुद्रोऽस्मि बोधेन बलेन धीर - सु/ 99
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ख
खगण: कामहा : लयं भा/60 खविषयो यो नागतः - श्र / 61 खविषयं विरसं नहि मे मनो - नि/82
ग
गंगा गौश्च वामृतं भा / 93
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गणधरैः प्रणतोऽस्ति यदास्वयं प / 82 गतगतिः सगतिश्च सदागति नि/ 43 गतमलो विरसस्त्वि कारणात् - प / 55 गन्तो लयं स्वात्मनि तेऽस्ति वांछा - सु/ 45 गुणगणैर्गुरुभिश्च समानतः - नि/ 30 गुणवतामिति चासि मतोऽक्षर: - नि/ 99 गुणीभवन्तीह यते नरायां - सु/ 89 गौश्चर्यया पापततौ च मौनो सु/92
च
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चंचलचित्तसंवरं भा / 27 चरणमुकुटः शिरसित - श्र / 80 चरणमोहकबन्धनहानयो - प / 45 चरणयुग्ममिदं तव मानसः - fa/45 शय्यानिषद्याप / 98 चलतु शीततमोऽपि सदागति - प / 15 • चाप्ता ह्यसानसुरतासति - श्र / 96 चित्ताकर्षि तथापिज्ञैः श्र/प्र/ 5
(३४६ )
चित्ताकर्षि तथापिज्ञैः - प / मं / 5 चिन्तातुरोऽजस्रमयं ह्यगारी - सु/ 53 चिदानन्दोषाकरो - भा/32
ज
जगति
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नाप्यधुना यशसासितः - प / 93 जगति सत्वदलः सकलश्चलः - प / 80 जगदिदं द्विविधं खलु चेतनं - प/ 30जडजेन माऽक्षरेण - श्र / 67 जड़तनोर्मदरागनिराकृति - नि/ 60 जननसागरपोषणभाकरः - नि/ 67 जन्या सुतस्ताडितको रुदन् सन् - सु/ 96 जलाशये जलोद्भवमिवात्मानं श्र/ 33 जलाश्रिता मंजुलवीचिमाला - सु/ 61 जिगमिषुर्निकटं तव ना विना - नि/ 62 जितको दृग्भयानक: - भा / 33 जितक्षुधादिपरिषह: - / 13 जितमोहहारकेण व्यालसता - भा/9 जितेन्द्रियसंयमधारकः स - सु/ 65 जिनमतस्त्वयि योऽपि मुँदालयम् - नि/13 जिनपदपद्ममस्य - 21/63
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जिपदौ शरणौ त्वपि कौ कलौ नि/11 जिनमतोन्नति तत्परजीवनं प / 95 जिनवरं परिवेत्ति विनिश्चित - नि/73 जिनसमयं जानीत आत्मानं श्र / 21 जिनागमेऽन्योन्यविरुद्धधर्मा - सु / 56 जिनागमं सदाश्रित्वा भा / 82 ज्वलतात्र शंकरेण त्यागो भा/35 ज्ञानोऽनुभूतो यदि नात्मभाव - सु/ 91 ज्ञानरूपीकरे दीपो भा/28
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ज्ञानान्न वृत्तान्न च भावनाया: - ज्ञानेन वृद्धो यदि पक्षपाती - सु / 5
त
सु/ 66
सु/ 39
ततस्तदाप्त्यै भगतस्तिष्ठा - भा / 50 तथा जितेन्द्रियोंगतो - श्र/83 तथा प्रतीतिस्तु सुखस्य तत्र - तदस्त्यसुमतामस्ति - 2 / 71 तदाSSत्मा मेऽजायते श्र/88 तनुभृतां व्याधिसुमन्दिरं सा - सु/12 तनुरुषारुषाताऽशुचिसागरा - प / 58 तपनता तपनस्य निदाघिका प/ 19 'तप्त ! मनोभववसुना श्र / 66
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