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वे वैद्य लौकिक शरीर इलाज जाने,...
__ये वैद्यराज भवनाशक हैं सयाने । हैं वन्ध, पूज्य, शिवपन्थ हमें बताते,
निःस्वार्थपूर्ण निज जीवन को बिताते ।।७६ ।।
था, है जिनागम, रहे जयवन्त आगे,
पूजो इसे तुम सभी उरबोध जागे । पावो कदापि फिर ना भवदुःख नाना,
हो मोक्षलाभ, भव में फिर हो न आना ।। ७७।।
आता वसन्त वन में वन फूल जाता,
__नाना प्रकार रस पी दुख भूल जाता। पीऊं जिनागम सुधा चिरकाल जीऊँ,
देवादि शास्त्र मदिरा उसको न पीऊँ ।।७८।।
निष्पक्ष हो श्रमण आगम देखता है,
शुद्धात्म को सहज से वह जानता है । जाके निवास करना निज धाम में ओ,
। संदेह विस्मय नहीं इस काम में हो ।।७९।।
आधारं ले अयि! जिनागम पूर्ण तेरा,
हैं भव्य जीव करते शिव में बसेरा । मैं भी तुझे इसलिये दिन रैन ध्याऊँ,
धारूँ तुझे हृदय में सुख चैन पाऊं ।।८।।
ज्ञाता नहीं समय का दुख ही उठाता,
औ ना कभी विमल केवलज्ञान पाता । राजा भले वह बने, निधि क्यों न पाले,
. भाई न खोल सकता वह मोक्ष ताले ।।८१।।
श्रद्धासमेत जिन आगम को निहारें,
जो भी प्रभो! हृदय में समता सुधारे । वे ही जिनेन्द्र पद का दुत लाभ लेते,
संसार का भ्रमण त्याग विराम लेते ।।८२।।
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