Book Title: Panchshati
Author(s): Vidyasagar, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Gyanganga

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Page 354
________________ कृषक कृषी का कार्य करे वह ध्येय धान्य का लाभ रहा । किन्तु घास का ध्येय रहा तो हास्य पात्र वह आप रहा । ! संग सहित - सागारी हो या संग रहित - अनगारी हो । भवक्षय करने धर्मनिरत हो शिवसुख के अधिकारी हो । । ५० ॥ यथाशक्ति औ तथाभक्ति से दान पात्र को दे दाता । फल के प्रति यदि किसी तरह भी मन में लालच नहिं लाता । । वही रहा है प्रशस्त दाता, बुध-मत हमको बतलाता ! कीर्ति फैलती जग में उसकी सुख पाता शाश्वत साता । । ५१ ॥ सही दान बस वही कहाता विनय भाव से घुला हुआ । दाता पूजित बुध जन से हो नम्र भाव में ढला हुआ । । दुग्ध पान करके भी बालक तुरत वमन वह कर लेता । मानवती माता के मुख को मुड़कर भी नहिं लख लेता । । ५२ ।। चिन्ताओं से घिरा रहेगा आजीवन दिन रैन बही । दो दो नारी जिसकी होती गृही जिसे सुख-चैन नहीं । । लगभग वैसा गुरु संयत भी चिंतित रहता खेद रहा। जिसके शिष्यों में आपस में वैर भाव मन-भेद रहा ।। ५३ ।। महाव्रतों में महा रहा है मुनियों का व्रत शील रहा। इन्द्रियविषयों में रसना का विजय मुख्य सुखझील रहा । । सब दानों में अभय-दान ही श्रेष्ठ रहा वरदान रहा । सब धर्मों में धर्म-अहिंसा मान्य रहा मन मान रहा। । ५४।। प्रशस्त ध्यानों में सुखदाता शुक्ल- ध्यान वह श्रेष्ठ रहा । प्रधान तप में ध्यान रहा निज- निधि का निधान जेष्ठ रहा ।। सभी रसों में मधुर त्याग ही प्रथम रहा बुध श्लाघ्य रहा । विज्ञ कहें बस यही साध्य है मुनियों का आराध्य रहा। । ५५ । प्रमाण के अनुचर हो चलते जिन शासन के नय सारे । भिन्न स्वभावी रहें परस्पर किन्तु लड़ें नहिं दृग-धारें ।। भले नदी के एक कूल को अन्य कूल प्रतिकूल रहे । किन्तु नदी को कुल दोनों मिल कूल सदा अनुकूल रहे । । ५६ । ३३७)

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