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हो सूत्र में कुसुम सज्जन कण्ठ जाता,
निर्दोष ही कनक आदर नित्य पाता। जैसी समादरित गाय सुधी जनों से,
__ वैसी सदैव समता मुनि सज्जनों से ।।८३।।
वर्षा हुई कृषक तो हल जोत लेगा,
बोया असामयिक बीज नहीं फलेगा। " तू देव वन्दन अकाल अरे! करेगा,
होगा न, मोक्ष तुझको भव में फिरेगा ।। ८.४ ।।
राजा सशस्त्र रण से जय लूट लाता,....
__ हो दाँत, भोजन करो अति स्वाद आता । सम्यक् जिनेन्द्रनुति भी सुख को दिलाती,
भाई निजानुभव पेय पिला जिलाती ।।८५।।
ज्यों वात जो सरित ऊसर हो चलेगा,
हो शीत, शीघ्र सब के मन को हरेगा। आख्यान अन्त प्रति के बल-पा, विधाता,
___ आत्मा अवश्य बनता सुख पूर्ण पाता ।।८६ ।।
प्राची प्रभात जब रागमयी सुहाती,
तो अंगराग लगता वनिता सुहाती । पैराग से समनुरंजित कायक्लेश,
__ होता सुशोभित नहीं सुख हो न लेश ।। ८७।।
दुर्वेदना हृदय की क्षण भाग जाती,
संवेदना स्वयम की झट जाग जाती। ऐसी प्रतिक्रमण की महिमा निराली,
तू धार शीघ्र इसको वन भाग्यशाली ।।८८।।
भाई सुनो मदन से मन को बचाओ,
संसार के विषय में रुचि भी न लाओ। पाओ निजानुभव को निज को जगाओ ,
सद्धर्म की फिर अपूर्व प्रभावना हो ।। ८९।।
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