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विशेष
दिव्या लोक प्रदा ने श द र्शन शुद्धि भा स्क रः
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भव्या ब्ज क क दावा श स्पर्श कों शु शुभा क रः
यह सामान्य मुरजबन्ध का चित्र है। इसमें पूर्वार्द्ध के विषम संख्यांक 1,3,5,7,9,11,13,15 अक्षरों को उत्तरार्ध के समसंख्यांक 2,4,6,8,10,12,14,16 अक्षरों के साथ क्रमशः मिलाकर पढ़ने से श्लोक का पूर्वार्ध और उत्तरार्ध के विषम संख्यांक अक्षरों को पूर्वार्ध के समसंख्यांक अक्षरों के साथ क्रमशः मिलाकर पढ़ने से उत्तरार्ध बन जाता है। इसी प्रकार के 16,22,28,34,40,46,52,58,64,70, 76,82,8894 और 100 क्रमांक श्लोक भी इसी काव्य में है । चित्रालंकार में अनुस्वार और विसर्ग का अन्तर ग्राह्य नहीं होता है ।