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जूलियन हक्सले को कहना पड़ा कि प्रजातिवाद का सिद्धान्त झूठा भी है और खतरनाक भी। वस्तुत: आर्य शब्द प्रजातिवाचक है, जबकि द्रविड़शब्द प्रजातिवाचक न होकर स्थानवाचक है। मनु ने द्रविड़ शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिये किया, जो द्रविड़ देश में बसते थे।
___डॉ. रामनाथ शर्मा और डॉ. राजेन्द्रशर्मा के अनुसार “भारत इतना विशाल देश है कि इसको छोटा मोटा महाद्वीप कहना भी अनुचित नहीं होगा। इस विशाल भूखण्ड में लगभग 50,00,000 वर्ष पूर्व के मनुष्य के चिह्न प्रकट हुए हैं। हजारों वर्षों से यहाँ पर बाहर से प्रजातियाँ आती रही। अत: भारतवासियों में अनेक प्रकार की प्रजातियों के शारीरिक लक्षण पाये जाते हैं। इस प्रकार से यह प्रजातियों का अजायबघर ही है।''2
इन्होंने भारतीय जनता में नीग्रिटो, प्रोटोआस्ट्रेलायड, भूमध्यसागरीय प्रजाति, पिशाच आदि दरद भाषा परिवार की तीन प्रजातियाँ- अल्पाइन, दीनारिक, आर्मीनियन और नार्दिक,
और मंगोल प्रजाति मानी है। इसमें नीग्रिटो अफ्रीका और प्रशांत महासागर में बसी नीग्रायड (Negroid) प्रजाति की एक नस्ल है। डा. हट्टन और बी.एस. गुहा के अनुसार नीग्रिटो भारत की सबसे प्राचीन प्रजाति है। प्रोटो आस्ट्रेलायड (Proto Australoid) नीग्रिटो के बाद भारत में आने वाली दूसरी प्रजाति थी। कुछ विद्वानों के अनुसार यही भारत की आदिम प्रजाति है, क्योंकि नेग्रिटो प्रजाति के अवशेष भारत में बहुत कम मिलते हैं। भूमध्यसागरीय प्रजाति भारत में आई हुई तीसरी प्रजाति मानी जाती है। इन्हीं लोगों ने सिन्धु घाटी की सभ्यता स्थापित की। इनकी भाषा सम्भवत: द्रविड़ थी। भूमध्यसागरीय प्रजाति के बाद भारत में मध्य एशिया की पामीर पर्वतमाला और ईरान के पठार से ईसा से 3000 वर्ष पूर्व एक नवीन प्रजाति आई। ये लोग पिशाच अथवा दरद भाषा परिवार की आर्य भाषा बोलते थे। इनमें अल्पाइन प्रजाति गुजरात में, दीनारिक प्रजाति बंगाल, उड़ीसा, काठियावाड़, कन्नड़ और तमिलप्रदेश में और आर्मीनियन प्रजाति बम्बई के परसियों के रूप में मिलते हैं। इण्डो आर्यन की एक बड़ी प्रजाति नार्दिक 1500 ई पूर्व के लगभग भारत में आए और इन्होंने भारत की प्राचीन सभ्यता का निर्माण किया। मेक्समूलर के अनुसार नार्दिक प्रजाति भारत में मध्य एशियासे, तिलक के अनुसार उत्तरी ध्रुव से
और गाइल्स के अनुसार यूरोप से आए। भारत की छठी प्रजाति मंगोल है। ये असम में और बर्मा में अधिक पाये जाते हैं। इनका उद्गम इरावती नदी की ऊपरीघाटी, चीन, तिब्बत और मंगोलिया में माना गया है।
इन प्रजातियों के शारीरिक लक्षण ओर रंगों में भिन्नता पाई जाती है। डी.एन. मजूमदार के अनुसार नेग्रिटो का सिर ऊँचा, खड़ा माथा (Vertical Head), छोटा और चौड़ा मुँह, मोटे ओठ, तंग कंधे, ऊंचा कटिप्रदेश, छोटी टांगे, लम्बी भुजाएँ, दाढ़ी और शरीर पर कम बाल हैं। इनके वयस्क पुरुषों का कद 150 से.मी. होता है। इनकी त्वचा का रंग मटियाला, पीला, बाल काले और धुंघराले होते हैं। इनके लक्षण भारतीय समुद्र के तटवर्ती प्रदेशों में पाये जाते हैं।'
1. रामधारी सिंह दिनकर, संस्कृति के चार अध्याय, पृ. 43 2. डॉ. रामनाथ शर्मा और डॉ. राजेन्द्र शर्मा, भारतीय समाज, संस्थायें और संस्कृति, पृ. 15 3. वही, पृ. 15-16
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