Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास : के द्वारा अनायास ही प्राप्त कर लेते हैं । 'भाव, भक्ति और विश्वास के बिना संशय का मूलेच्छेद नहीं होता, हरिभक्ति के बिना मुक्ति निर्मूल है -
भाव भगति विसवास बिनु, कढ़े न संशयमूल।
कहै छाती शरि सम अनु सुक्षति नही मूल॥' भगवान से प्रेम हो जाने पर सभी संशय समाप्त हो जाते हैं तथा काम, क्रोधादि विकार पलायन कर जाते हैं -
मेरै संसे कोई नहीं, हरि सौं लागा हेत। ।
काम क्रोध सौं जूझना, चौड़े मांडा खेत ।। इस प्रेम भक्ति से ज्ञान का जन्म होता है और अज्ञान मिटता है -
प्रेम भक्ति सूं उपजै ज्ञाना। होय चांदना मिटै अज्ञाना ।। ' भक्ति परमप्रेमस्वरूपा है, गँगे के गुड़ की तरह अनिर्वचनीय है । भवसागर में डूबने वाले का एक मात्र सहारा यह प्रेम ही है। इस प्रेम के बिना जीव की कोई गति नहीं है। प्रेम अकेले भक्त ही नहीं करता, अपितु भगवान भी प्रेम का ही भूखा है | भक्त भगवान को भूल जाय परन्तु भगवान भक्त को नहीं भूलते हैं
जे हम छारे राम को, तो राम न छाडे।
दादू अमली अमल थे, प्रन क्यूं करि काढ़े ॥' सन्त अगर उस परमप्रिय के दरवाजे पर प्रेम के भिखारी बनकर हाजिर होते हैं, तो राम भी दूल्हा बनकर उनके घर पर आ विराजता है -
दुलहिन गावहु मंगलाचार ।
हम घरि आए राजा राम भरतार ।।" दुनिया की प्रीति स्वार्थ की प्रीति होती है, लेकिन भक्त और भगवान की प्रीति बिना स्वार्थ की प्रीति होती है -
स्वारथ को सब.कोई सगा, जग सगला ही जानि।
बिन स्वारच आदर करै, सो परि की प्रीति पिछानी ॥' 1. भागवत 11,2032-3
2. कबीर ग्रन्थावली तिवारी पृष्ठ 118, 1 3. कवीर ग्रन्थावली तिवारी पृष्ठ 183, 11 4. चरनजानी पृष्ठ 15 5. सन्त काव्य पृष्ठ 292 : 32
6. कबीर ग्रन्थावली तिवारी पद 5 7, कबीर ग्रन्थावली तिवारी पृष्ठ 159 : 42