Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास:
चरित्र को उत्कर्ष प्रदान करने के साथ-साथ मुख्य कथानक के साथ एकजीव
भूधरदास ने “पार्श्वपुराण में यत्र तत्र उपदेश एवं जैनसिद्धांतों का वर्णन करने का प्रयास किया है । यद्यपि धार्मिक उपदेशों एवं सैद्धान्तिक विवेचनों से कथानक के प्रवाह में बाधा पड़ती है; परन्तु भूधरदास “पार्श्वपुराण को महाकाव्य के साथ-साथ धर्मग्रन्थ भी बनाना चाहते थे कदाचित् इसीलिए यह शिथिलता परिलक्षित होती है।
भूधरदास द्वारा रचित “पार्श्वपुराण" रीतिकालीन महाकाव्य श्रृंखला की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है ।यह रीतिकाल का श्रेष्ठ महाकाव्य है। यह महाकाव्य विषयक अन्त: और बाह्य लक्षणों की कसौटी पर लगभग पूरा उतरने वाला काव्य है । वह महत् नायक, महदुद्देश्य, श्रेष्ठ कथानक, उच्च वस्तु-व्यापार दर्शन, रसाभिव्यंजना, उदात्तशैली आदि की दृष्टि से सफल महाकाव्य प्रतीत होता है । यद्यपि उसमें स्वर्ग, नरक आदि के लम्बे वर्णनों से कथानक यत्र तत्र उलझ गया है और उसका अन्तिम सर्ग धार्मिक एवं दार्शनिक तत्त्वों की अतिशयता से प्रबन्ध की भूमि पर भारस्वरूप बन गया है फिर भी इस प्रबन्ध की अनेक विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं, जो निम्नलिखित हैं .
1. काव्य की भित्ति जैनदर्शन एवं जैनधर्म पर आधारित है। 2. काव्य सामाजिक व राजनैतिक कम तथा पौराणिक दार्शनिक व धार्मिक
अधिक है।
परम्परापालन के साथ नवीनता का समावेश है। 4. प्रेम, श्रृंगार के सीमित दृश्य तथा भक्ति व शान्तरस की अधिकता है। 5. नायक धीरोदात्तगुणसमन्वित तीर्थकर महापुरुष है। 6. काव्यरचना द्वारा हिंसा पर अहिंसा, असत्य पर सत्य, वैर पर क्षमा,
राग पर विराग, पाप पर पुण्य की विजय का उद्घोष किया गया है। चतुर्वर्गफलप्राप्ति में अर्थ और काम को हीनता तथा धर्म और मोक्ष को प्रधानता दी गई है।