Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
View full book text
________________
एक समालोचनात्मक अध्ययन
311
(ग) अलंकार विधान काव्य मानव की अन्तरात्मा को तृप्ति प्रदान करता है । काव्यगत सौन्दर्य के महत्वपूर्ण साधनों में गुण, रीति, अलंकार आदि आते हैं। प्राय: सभी काव्यशास्त्रियों ने अलंकार को काव्य का विशेष सौन्दर्यवर्धक तत्त्व स्वीकार किया है । अलंकारों के सम्यक् प्रयोग से भावाभिव्यक्ति में रमणीयता, कोमलता, सूक्ष्मता और तीव्रता आती है । सुन्दर भावों की सरस अभिव्यक्ति के लिए श्रेष्ठ अलंकारों की बोजना आवश्यक है । व्यावहारिक धरातल पर अलंकारों के द्वारा अपने कथन को कवि या लेखक श्रोता या पाठक के मन में भीतर तक बैठाने का प्रयत्न करता है। बात को बढ़ा-चढ़ा कर उसे मन का विस्तार करता है। बाह्य वैषम्य आदि का नियोजन कर आश्चर्य की उद्भावना करता है तथा बात को घुमा फिराकर वक्रता के साथ कहकर पाठक की जिज्ञासा को उद्दीप्त करता
भूधरदास ने बलात् अलंकारों को लाने का प्रयास नहीं किया, अपितु उनकी रचनाओं में अलंकार स्वभावत: आ गये हैं। भूधरदास सहित प्राय: सभी जैन कवियों ने भावगत सौन्दर्य को अक्षुण्ण रखते हुए स्वाभाविक रूप से अलंकारों का प्रयोग किया है। इस सम्बन्ध में श्री नेमिचन्द ज्योतिषाचार्य लिखते हैं कि "हिन्दी जैन कवियों की कविता कामिनी अनाड़ी राजकुलांगना के समान न तो अधिक अलंकारों के बोझ से दबी है और न ग्राम्यबाला के समान निराभरणा ही है। इसमें नागरिक रमणियों के समान सुन्दर उपयुक्त अलंकारों का समावेश किया गया है । ___भूधरसाहित्य में प्राय: सभी प्रमुख अलंकारों का प्रयोग हुआ है परन्तु उनमें भी अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, यमक, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, विनोक्ति, विभावना दृष्टान्त, उदाहरण आदि अलंकारों का साभिप्राय सहज और कलापूर्ण व्यवहार हुआ है । इनका विस्तृत विवेचन निम्नलिखित है1. हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन - श्री नेमिचन्द ज्योतिषाचार्य, पृष्ठ 237 2. वही पृष्ठ 163