Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
आस्त्रव भावना - मोह की नींद के जोर से संसारी हमेशा संसार में घूमता रहता है। कर्मरूपी चोर उसका सर्वस्व लूट लेते हैं, परन्तु उसे कुछ भी ध्यान नहीं रहता है
मोह नींद के जोर, जगवासी घूमै सदा।
कर्मचोर चहुँ ओर, सरवस लूटै सुथि नहीं॥' मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग - ये आस्त्रव के कारण हैं । आस्त्रव कर्मबंध का कारण है और बन्ध चार गति के दुःखों को देने वाला है
मिथ्या अविरत जोग कषाय । ये आस्ावकारन समुदाय॥ आस्खव कर्मबंध को हेत। बंथ चतुरगति के दुख देत॥'
संवर भावना - सद्गुर के गाने पर जब मोह रूपी नींद का उपशम होता है, तब कुछ उपाय ( सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र ) से कर्मरूपी चोरों का आना रुकता है
सतगुरु देहि जगाय, मोह नींद जब उपशमै। तब कछु बनै उपाय, कर्मचोर आवत रुके ।'
समिति गुप्ति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषह-सहन एवं संयम (चारित्र ) - ये संवर के निर्दोष कारण हैं। संवर करने वाले को मोक्ष प्राप्त होता है
समिति गुप्ति अनुपेहा धर्म। सहन परीषह संजम पर्म ।। ये संवर कारन निदोष । संवर करै जीव को मोख ।।
निर्जरा भावना - ज्ञानरूपी दीपक में तपरूपी तेल भरकर प्रम को छोड़कर अपने निज घर को खोजें, जिससे पूर्व में बैठे कमरूरुपी चोर निकल जाते हैं
ज्ञान दीप तल सेल परि, घर सोधै भ्रम छोर। या विधि विन निकसैं नहीं, पैठे पूरब चोर ।।
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1. पावपुराण, कलकत्ता, धरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 30 2. पार्श्वपुराण, कलकता, पूषरदास, अधिकार 7, पृष्ठ 64 3. पार्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 30 4. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 7, पृष्ठ 64 5. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 30