Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

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Page 465
________________ 432 महाकवि पूधरदास : असमानताएँ : सन्त साहित्य और भूधरसाहित्य में अनेक असमानताएँ भी हैं; जो निम्नलिखित हैं 1. जहाँ सन्तों का निर्गुण ब्रह्म सदसद्विलक्षण, भावाभावविनिर्मुक्त, अगम, अलख, निरंजन, निर्गुण व अनिर्वचनीय है । अनाम होने पर भी नामवाला, अरूप होने पर भी रूपमय, निराकार होने पर आकार वाला निर्गुण होने पर भी गुणमय है। वहाँ भूधरदास का राम या ब्रह्म परमात्मा के रूप में निश्चित स्वरूपवाला है। यद्यपि वह किसी दृष्टि से अनिर्वचनीय है; परन्तु फिर भी उसका स्पष्टतया कथन किया जा सकता है। वह परमब्रह्म ( परमात्मा) अरहन्त के रूप में 46 गुणवाला तथा सिद्ध के रूप में 8 गुणवाला है। दूसरे शब्दों में अनन्त गुणवाला होकर भी 46 और 8 गुण रूप निश्चितस्वरूप वाला है। भूधरसाहित्य में यद्यपि निर्गुण ब्रह्म को सिद्ध परमेष्ठी के रूप में स्वीकारा जा सकता है; परन्तु सिद्ध के अतिरिक्त अरहन्त, आचार्य, उपाध्याय और साधु परमेष्ठी को भी पूज्य माना गया है । अरहन्त और सिद्ध वीतरागता और सर्वज्ञता की दृष्टि से समान होने पर भी हितोपदेशी होने के कारण अरहन्त को प्रथम पूज्यता प्रदान की गई है । प्रत्येक परमेष्ठी का एक निश्चित स्वरूप माना गया है । ब्रह्म प्रारम्भ से भगवान हैं, जबकि अरहन्त व सिद्ध पहले संसारी थे, बाद में भगवान बने । अरहन्त परमेष्ठी में सगुण की तथा सिद्ध परमेष्ठी में निर्गुण ब्रह्म की सम्भावना की जा सकती है। परमात्मा रूप ब्रह्म में कर्तृत्व का आरोप होने पर सहज ज्ञातृत्व होता है। 2. भूधरदास के अनुसार प्रत्येक आत्मा अजर-अमर एवं अविनाशी हैं। शक्ति अपेक्षा सिद्ध समान होने पर भी व्यक्ति पर्याय अपेक्षा संसारी है। जहाँ सन्तों का जीव ब्रह्म का अंश है; वहाँ भूधरदास द्वारा वर्णित जीव, ब्रह्म का अंश न होकर एक स्वतंत्र सत्तावाला चैतन्य पदार्थ है। प्रत्येक आत्मा स्व को जानकर, पहिचानकर और अपने में लीन होकर परमात्मा बन सकता है। प्रत्येक जीव, स्वावलम्बनरूप पुरुषार्थ द्वारा परमात्मा बनता है अर्थात् ईश्वरत्व प्राप्ति पुरुषार्थ द्वारा होती है, किसी के आशीर्वाद या कृपा द्वारा नहीं।

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