Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

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Page 469
________________ 436 महाकवि भूधरदास : ऐसो श्रावक ...... ऐसो श्रावक कुल तुम पाय, वृथा क्यों खोवत हो । टेक ॥ कठिन कठिन कर नर भव पाई, तुम लेखो आसान। धर्म बिसारि विषय में राचो, मानी न गुरु की आन । ॥ ऐसो श्रावक कुल. ॥ चक्री एक मतंगज पायो, तापर ईंधन ढोयो। बिना विवेक, बिना मति ही को, पाय सुथा यग घायो । ॥ ऐसो श्रावक कुल. । काहू शठ चिन्तामणि पायो, मरम न जानो ताय। वायस से देखि उदधि में फैक्यो, फिर पीछे पछित्ताय ।। ॥ ऐसो श्रावक कुल. ॥ सात व्यसन, आठों मद त्यागो, करुणाचित्त विचारो। तीन रतन हिरदे में धारो, आवागमन निवारो। ॥ऐसो श्रावक कुल. ॥ 'भूधरदास' कहत भविजन सों, चेतन अब तो सम्हारो। प्रभु का नाम तरन तारन जपि, कर्म फन्द निरवारो।। ॥ ऐसो श्रावक कुल. ॥ -- भूधरदास

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