Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

View full book text
Previous | Next

Page 470
________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 437 उपसंहार : भूधरदास का योगदान भारतीय संस्कृति अनादिकालीन है। यह वैदिक बौद्ध एवं जैन धाराओं में प्रवाहमान होती हुई भारतीय जनजीवन को सदैव अनुप्राणित करती रही है। जैनधारा में प्रवर्तमान जैनकवियों, लेखकों और विचारकों ने हमेशा विश्वकल्याण का ही अनुचिन्तन किया है। उन्होंने जो विचार, तेवज्ञान एवं उपदेश दिया, विश्व की समस्याओं के जो समाधान प्रस्तुत किये, वे भारतीय संस्कृति की अमूल्य थाती हैं। इसी श्रृंखला में भूधरदास का योगदान भी उल्लेखनीय है । उनका जैन कवियों और विद्वानों में अपना विशिष्ट स्थान है। भूधरदास 18 वीं शताब्दी के जैनकवि हैं। उन्होंने रीतिकालीन परिवेश से अपने आपको सर्वथा पृथक् रखकर धार्मिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक काव्य का सृजन किया और रीतिकालीन श्रृंगारी काव्य की आलोचना की। कवि भूधरदास आगरा में खण्डेलवाल जैन परिवार में उत्पन्न हुए। वे धार्मिक परोपकारी, समाजसुधारक, मृदुभाषी एवं सदाचारी थे । यही कारण है कि उन्होंने धर्मप्राण जीवनयापन करने का उपदेश दिया तथा वैराग्यभाव एवं मुनिधर्म की भूरि-भूरि प्रशंसा की। विविध तर्कों एवं उल्लेखों के आधार पर उनका समय वि. स. 1756-57 से वि सं. 1822-23 तक 65 वर्ष तथा समयांकित रचनाओं के आधार पर रचनाकाल 25 वर्ष सिद्ध होता हैं | जन्म-मृत्युस्थान एवं कार्यक्षेत्र निर्विवादरूप से आगरा ही है। रचनाओं में एक मात्र गद्यकृति " चर्चा समाधान" तथा पद्य में महाकाव्य " पार्श्वपुराण” तथा मुक्तक काव्य में जैनशतक, पदसंग्रह एवं अनेक फुटकर रचनाएँ सम्मिलित हैं; जिनका नामोल्लेखपूर्वक विस्तृत वर्णन किया जा चुका है।' कवि की रचनाओं का भावपक्ष और कलापक्ष अनूठा है। उसमें अनेक विशेषताएँ विद्यमान हैं। उन विशेषताओं में कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं - 1. महाकाव्य " पार्श्वपुराण" के कथानक में सर्गबद्धता, छन्दबद्धता, पुराणसम्मत, महानता, धर्म भावना की अधिकता, जैन धर्म एवं दर्शन के प्रमुख विषयों व तत्त्वों के वर्णन की बहुलता आदि है । 2. चरित्र - चित्रण में अतिमानवीय चरित्रों में इन्द्र-इन्द्राणि, देव-देवियों का कथन तथा मानवीय चरित्रों के अन्तर्गत उत्तमचरित्र के रूप में धीरोदात 1. प्रस्तुत शोध प्रबन्ध, अध्याय 4

Loading...

Page Navigation
1 ... 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487