Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास
भूधरदास 'ने समसामायिक घोर श्रृंगारिक काव्यरचना करने वाले कवियों की तीव्र आलोचना की है। इससे हिन्दी साहित्य में अश्लील भावों का प्रवेश तो रुका ही, साथ ही आने वाली पीढ़ी को भी प्रेरणा प्राप्त हुई तथा नारी के प्रति स्वच्छ दृष्टिकोण विकसित हुआ ।
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भूधरदास ने अपने साहित्य द्वारा श्रमण संस्कृति का पोषण किया है श्रमण संस्कृति का मूलाधार "अहिंसा" की स्थापना करने हेतु कवि ने हिंसा को सब पापों एवं व्यसनों का मूल ठहराया है। कवि ने सामान्य जन जीवन की हित साधना के लिए इस रहस्य का उद्घाटन किया है। 2
" निशि भोजन भुंजन कथा" के माध्यम से कवि ने जीव हिंसा की सम्भावनाएँ बलताकर उत्तम स्वास्थ्य की रक्षा हेतु समाज को सही मार्गदर्शन दिया है तथा अहिंसा धर्म को प्रोत्साहित भी किया है। आरोग्य की दृष्टि से भी रात्रि की अपेक्षा दिन में भोजन करना श्रेयस्कर है।
इसी तरह " हुक्का निषेध चौपाई" के द्वारा कवि ने धूम्रपान की दुष्प्रवृत्ति को रोकने का प्रयास किया है। इसमें विविध तर्कों के द्वारा धूम्रपान से होने वाली हिंसा का वर्णन किया है, साथ ही धूम्रपान के अन्य दुर्गुणों की ओर ध्यान आकर्षित किया है । प्रस्तुत रचना द्वारा कवि ने बढ़ते हुए धूम्रपान के रोग से समाज की रक्षा की हैं तथा मानवजाति के सुधार हेतु अनूठी देन दी हैं।
तीर्थंकर पार्श्वनाथ को केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाने पर सामाजिकों द्वारा कुछ प्रश्न और भगवान पार्श्वनाथ द्वारा उनके उत्तर प्रस्तुत करवाकर कवि ने समाज में व्याप्त अनीति अन्याय, हिंसा, झूठ, चोरी व्यभिचार आदि दुष्कर्मों पर अंकुश लगाने की प्रेरणा दी है। यदि जीव दुष्कर्मों से अपने आपको नहीं बचा पायेगा तो उसे दुर्गति में भयंकर दुःखों को सहना होगा । इसप्रकार भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर के रूप में कवि द्वारा सदाचरण एवं सत्कर्मों को प्रोत्साहित किया गया है; जिससे मानव जीवन उन्नत एवं सुन्दर बन सकेगा । "
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भारतीय संस्कृति प्रारम्भ से ही लोक परलोक स्वर्ग, नरक आदि में आस्था व्यक्त करती आ रही है। इसी भाव-भूमि की प्रतिष्ठा द्वारा कवि ने कर्म
1. जैनशतक छन्द 64,65,66 3. पार्श्वपुराण पृष्ठ 63 64 तथा 85 से 87
2. जैनशतक छन्द 50 से 61