Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

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Page 421
________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन आवश्यक - अपरिहाणि सावधानीपूर्वक स्थिति से पवित्र चौदहवीं आवश्यक अपरिहाणि भावना है। - 389 षट आवश्यक क्रियाओं को सदैव उनकी हानि करना, परम मार्ग प्रभावना - जप, तप, पूजा, व्रतादि करके जिनधर्म के प्रभाव को प्रकट करना, पन्द्रहवीं मार्ग प्रभावना नामक भावना है। 2 प्रवचन वात्सल्य - चार प्रकार के संघ — मुनि, आर्यिका श्राचक, श्राविका के प्रति गाय की बछड़े से प्रीति की तरह प्रेम रखना प्रवचन, वात्सल्य नाम की सबको सुख देने वाली सोलहवीं भावना है। 3 सोलहकारण भावनायें परम पुण्य का साधन हैं। ये पृथक-पृथक एवं सब एक साथ तीर्थंकर पद का कारण हैं । तीर्थंकर पद का बंध मिथ्यात्व अवस्था में नहीं होता है। इसका बंध सम्यक्त्व में ही होता है। जो मुनिराज पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति रूप तेरह प्रकार के चारित्र' का पालन करते हुए बारह भावनायें भाते हैं, बाबीस परीषहों को सहते हैं, बारह प्रकार के तप तपते हैं, दशधर्मों का पालन करते हैं तथा सोलह कारण भावनाओं का चिन्तन करते हैं वे तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध करते हैं ।' 1. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 36 2. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 36 3. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 36 4. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 36 5. पंच महाव्रत दुद्धर घरै, सम्यक पाँच समिति आदरें । खीन गुप्ति पार्ले यह कर्म, तेरह विधि चारित मुनि धर्म ॥ पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूषरदास, अधिकार 9, पृष्ठ 86 6. बारह विधि दुर तप करै, दशलाघनी धर्म अनुसरै । पार्श्वपुराण कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 3, पृष्ठ 19 7. (क) सोलहकारण भावना, परम पुन्य का खेत । भिन्न भिन्न अरु सोलहों, तीर्थंकर पद देत ॥ पार्श्वपुराण, कलकचा, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 36 (ख) सोलह करन ये भवतार, सुमरत पावन होय दियो । भावें श्री आनन्द महामुनि, तीर्थंकर पद बंध कियो ॥ पार्श्वपुराण, कलकचा, भूषरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 36

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