Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

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Page 426
________________ 394 सप्त व्यसन एवं उनका निषेध : जुआ खेलना, मांस भक्षण, मद्यपान, वेश्यासेवन, शिकार, चोरी और परनारी रमण - ये सारा व्यन हैं। जो पास्वरूप है, निकला चाहिए ।' श्री गुरु शिक्षा सांभली (ज्ञानी) सात व्यसन परित्यागो रे । इन मारग मत लागो रे ॥ ये जग में पातक बड़े (ज्ञानी) जुआ के दोष एवं उनका निषेध : महाकवि भूषरदास: जुआ नामक व्यसन प्रत्यक्ष ही अपनी आँखों से अनेक दोषों से युक्त दिखाई देता है । वह सम्पूर्ण पापों को आमन्त्रित करने वाला है, आपत्तियों का कारण है, खोटा लक्षण है, कलह का स्थान है, दरिद्र बना देने वाला है, अनेक अच्छाइयाँ करके प्राप्त किये हुये उज्ज्वल यश को भी उसी प्रकार ढँक देने वाला है, जिस प्रकार केतु सूर्य को ढँक देता है। ज्ञानी पुरुष इसे अवगुणसमूह के घर के रूप में देखते हैं। इस दुनिया में जुआ के समान अन्य कोई अनीति दिखाई नहीं देती। इस व्यसनराज के खेल को कौतूहल मात्र के लिए भी कभी नहीं देखना चाहिये इसी सम्बन्ध में भूधरदास का अन्य कथन इस प्रकार हैं जूबा खेलन मांडिये, (ज्ञानी) जो धन धर्म गँवावें रे । देखता दुख पावे रे।। * सब विससन को बीज है, (ज्ञानी) मांस भक्षण एवं मद्यपान निषेध : - मांस भक्षण एवं मद्य पान का निषेध सप्त व्यसनों के त्याग में भी किया जाता है तथा अष्ट मूल गुणों के पालन करने में भी किया जाता है। इनके दोषों का वर्णन एवं निषेध अष्ट मूलगुणों का कथन करते समय पूर्व में ही किया जा चुका है । ' 1. जुआ खेलन मांस मद वेश्या विसन शिकार । चोरी पररमनी- रमन सातों पाप निवार 11 जैनशतक, भूधरदास, छन्द 50 2. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 9, पृष्ठ 86 3. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 50 4. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 9, पृष्ठ 86 5. प्रस्तुत शोध प्रबन्ध, अध्याय 7 —

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