Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

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Page 444
________________ महाकवि भूषरदास : मात-पिता-रज- वीरजसौं, उपजी सब सात कुधातु भरी है। माखिन के पर माफिक बाहर खाम के बेठन बेढ घरी है ।। नाहिं तो आय लगें अब ही बक वायस जीव बचै न घरी है। देह दशा यह दीखत भ्रात! घिनात नहीं किन बुद्धि हरी है ।' 16. संसार का स्वरूप एवं समय की बहुमूल्यता :- भूधरदास ने संसार के स्वरूप का विस्तार से अति मार्मिक वर्णन किया है । संसार का स्वरूप और समय की बहुमूल्यता के सम्बन्ध में कवि का कथन है - काहू घर पुत्र जायो काहू के वियोग आयो, काहू राग-रंग काहू रोआ रोई करी है। जहाँ भान ऊगत उछाह गीत गान देखे, सांझ समै ताही थान हाय हाय परी है । देखि भयभीत होय, मति कोने हरी है। ऐसी जगरीति को न हा हा नर मूढ़ ! तेरी 412 मानुष जनम पाय सोवत विहाय जाय खोवत करोरन की एक एक घरी है । संसार की अति विचित्र स्थिति देखकर भी अज्ञानी चेतता नहीं - देखो भरजोवन मैं पुत्र को वियोग आयो, तैसें ही निहारी निजनारी कालमग मैं । जे जे पुन्यवान जीव दीसत है या मही पै, रंक भये फिरै तेऊ पनहीं न पग में || 1. जैनशतक भूधरदास छन्द 20 2 पार्श्वपुराण, कलकत्ता अधिकार 3 पृष्ठ 18 , 3. जैनशतक भूषरदास छन्द 21 "

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