Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
8. बाह्याडम्बरों का विरोध तथा हृदय की पवित्रता दोनों में है।
आध्यात्मिक विषयों का प्रतिपादन दोनों में समान है।
अनुभवज्ञान एवं भाव का महत्व दोनों में है ।
आराध्य की अन्य देवों से महत्ता दोनों में है ।
दीनता व स्वदोष दर्शन दोनों में है t
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संसार, शरीर, भोगों का वर्णन व स्वर्ग-नरक का वर्णन लगभग समान है ।
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रीतिकालीन श्रृंगारिक काव्य की आलोचना दोनों साहित्यों में हैं । पुण्य-पाप विकारों का वर्णन दोनों में सामान्य रूप से हुआ है। आत्मा का सूक्ष्म विवेचन दोनों में है
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ईश्वर की सत्ता की स्वीकृति दोनों में है।
दोनों के अनुसार संसार दुःखमय हैं । दुःख का कारण अज्ञान, माया या भ्रम है।
भ्रम मृगमरीचिका के समान है। दोनों ने इसे समान ही माना है।
दोनों ने सुख दुःख में साम्य स्थापित किया है ।
दोनों के अनुसार जब तक देह से ममता मोह है, तब तक अशान्ति है। मोह भंग होते ही शान्ति मिल जाती है ।
मन पर दोनों ने विस्तार से चर्चा की है
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दोनों के अनुसार अन्तरंग से विरक्त ही सच्चा वैरागी हैं, मात्र भेष बदलने से कोई वैरागी नहीं हो जाता 1
भूधरदास के इसी रूप में स्वीकार किया है।
अनुसार तप मोक्ष देने वाला है। सन्तों ने भी तप को
भय, आशा, स्नेह और लाभ से रहित भक्ति ही सच्ची भक्ति है। इसे दोनों ने माना है।