Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

View full book text
Previous | Next

Page 456
________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन हिन्दी सन्त साहित्य में भूयसाहित्य या मूल्याकंड सन्त शब्द का अर्थ : हिन्दी सन्त” शब्द के संकुचित और उदात्त - जिन दो अर्थों का प्रारम्भ में विवेचन किया गया है, उनमें उदात्त शब्द अर्थ में कोई मतवैभिन्य है ही नहीं । परन्तु संकुचित अर्थ में हिन्दी आलोचना शास्त्र में “सन्त" शब्द नीची जाति में उत्पन्न, अशिक्षित कबीर आदि निर्गुण ब्रह्म के अनुयायियों के लिए प्रयुक्त हुआ है; जबकि जैन साहित्य में “सन्त" शब्द का प्रयोग सामान्यत: साधु के लिए हुआ है। जैन साधु 5 महाव्रत, 5 समिति, 5 इन्द्रियजय, 6 आवश्यक और 7 शेष गुण - इन 28 मूल गुणों का पालन करते हैं। साथ ही पाँच इन्द्रियों की आशा से रहित, समस्त आरम्भ और परिग्रह से रहित, ज्ञान ध्यान और तप में लीन रहते हैं। परद्रव्यों में मोह, राग, द्वेष नहीं करते हैं। आत्मस्वरूप में लीन रहते हैं। क्षधादि 22 परीषहों को जीतते हैं। उत्तमक्षमादि 10 धर्मों का पालन करते हैं । अनित्यादि 12 भावनाओं का चिन्तन करते हैं। अनशनादि 12 प्रकार के तपों को तपते हैं। संसार, शरीर और भोगों से पूर्णत: विरक्त रहते हैं । जब कि निर्गुण सन्तों में ये विशेषण नहीं पाये जाते हैं; अत: जैन साधुरूप सन्त और निगुर्ण ब्रह्म की उपासना करने वाले कबीर आदि सन्त पृथक्-पृथक् ही हैं। ___ "सन्त" शब्द का सामान्य अर्थ, सज्जन, अस्तित्व बोधक, परहित में निरत, दया, क्षमा, प्रेम, सहिष्णुता आदि मानवीय गुणों से युक्त व्यक्ति लेने पर जैन सद्गृहस्थ भी सन्त कहा जा सकता है, क्योंकि जैन धर्म का पालन करने वाला साधारण श्रावक भी अष्ट मूलगुणों का धारी, सप्त व्यसनों का त्यागी तथा अनीति, अन्याय, अमक्ष्य आदि का त्यागी होता है । वह देव पूजा, गुरुपासना आदि षट् आवश्यकों का पालन करता है। व्रती श्रावक 5 अण्वत, 3 गुणवत और 4 शिक्षाव्रत इन 12 व्रतों को धारण करता है। अत: जैन सद्गृहस्थ को भी जिसका आचरण शुद्ध है, जो ईश्वरस्वरूप आत्मगुणों में अनुरक्त है, संसार, शरीर और भोगों से आंशिक रूप से विरक्त है - *सन्त" कहा जा सकता है । जैन गृहस्थ रूप सन्त लोकमान्य उच्च कुल में उत्पन्न तथा शिक्षित होता है; जबकि कबीर आदि सन्त निम्न कुल में उत्पन्न एवं अशिक्षित या अर्द्धशिक्षित माने गये हैं। अत: जैन गृहस्थ सन्त और कबीर आदि सन्त भी स्पष्ट भिन्न प्रतीत होते हैं। ----- - - - - 1, प्रस्तुत शोध प्रबन्ध. प्रथम अध्याय 2. राजस्थान के जैन सन्त : व्यक्तित्व एवं कृतित्व - डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, भूमिका

Loading...

Page Navigation
1 ... 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487