Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
415 कवि ने बचपन और जवानी को क्रमश: अज्ञान व विषय- भोगों में व्यतीत करने का वर्णन करते हुए वृद्धावस्था में सावधान होने की बात अनेक प्रकार से कही है। साथ ही बुढ़ापे का विस्तृत विवेचन किया है। उदाहरणार्थ -
आया रे बुढ़ापा मानी, सुधि बुधि बिसरानी ॥ टेक ॥ श्रवन की शक्ति घटी, चाल चलै अटपटी। देह लटी भूख घटी, लोचन झस्त पानी॥ 1 ॥ दाँतन की पंक्ति टूटी, हाड़न की संधि छूटी। काया की नगरि लूटी, जात नहीं पहिचानी ।। 2 । बालों ने वरन फेरा, रोग ने शरीर घेरा। पुत्रहु न आवै नेर, औरों की कहा कहानी॥ 3 ॥ "भूधर' समुझि अब, स्वहित करोगे कब।
यह गति है है जब, तब पछितैहें प्राणी ॥ 4 || 18. राग और वैराग्य का अन्तर व वैराग्य की कामना - कवि राग (मिथ्यात्व) के कारण ही भोग, शरीर एवं संसार में एकत्वबुद्धि व सुखबुद्धि मानता है तथा राग (मिथ्यात्व) के अभाव होने पर उनसे विरक्ति मानता है ।
राग दै भोगभाब लागत सुहावने-से, बिना राग ऐसे लागें जैसे नाग कारे हैं। राग ही सौं पाग रहे तन में सदीव जीव राग गये आवत गिलानि होत न्यारे है। राग ही सौं जगरीति झूठी सब साँची जाने, राग मिटे सूझत असार खेल सारे है।
1. जेनशतक, भूधरदास, छन्द 28 से 31 2 जैनशतक, भूधरदास, छन्द 38 एवं 39 3. प्रकीर्ण पद · भूधरदास