Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

View full book text
Previous | Next

Page 439
________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 407 महामलिन उर बसैं कुभाव, दुर्गतिगामी जीव सुभाव ॥ 5. कुकवियों की निन्दा :- भूधरदास विषय-कषाय (रागादि) के पोषक ग्रन्थों को कुशास्त्र तथा उनकी रचना करने वाले कवियों को कुकवि मानते हुए आलोचना करते हैं - राग उदै जग अंध भयो, सहजै सब लोगन लांज गाई । सीख बिना नर सीख रहे, बिसनादिक सेवन की सुधराई ।। तापर और रचे रसकाव्य कहा कहिये तिनकी निठुराई। अंध असूझान की अँखियन मैं, झोंकत है रज रामदुहाई ॥ कंचन कुम्भन की उपमा कह देत उरोजन को कवि बारे। अपर श्याम विलोकत के, मनि नीलम की ढकनी हुँकि छारे ॥ यों सतवैन कहैं न कुपंडित, ये जुग आमिषपिंड क्यारे। सायन झार दई मुंह छार, भये इहि हेत कियौं कुच कारे॥' 6. कुलीन की सहज विनम्रता :- जिस प्रकार हंस की चाल स्वाभाविक होती हैं, उसे कोई सिखाता नहीं है। उसी प्रकार कुलीन व्यक्ति की विनम्रता सहज होती है . यथा हंस के वंश को, चाल न सिखवै कोय। त्यों कुलीन नर नारि के, सहज नमन गुण होय ॥ 7. महापुरुषों का अनुसरण :- महापुरुषों द्वारा किये गये आचरण (कार्य) का अनुसरण सारा संसार करता है - ज्यों महंत नर कारज करै। ताकी रीति जगत आचरै॥ 1 पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 1, पृष्ठ 5 2. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 64 3.जैनशवक, पूधरदास, छन्द 65 4 पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 26 5 पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 29

Loading...

Page Navigation
1 ... 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487