Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

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Page 412
________________ 380 महाकवि मुधरदास : -: बाबीस परीषह :क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंश मशक, नग्नता, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृण-स्पर्श, मल, सत्कार-पुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन - ये बाबीस परीषह हैं।' मुनिराज इन बाबीस परीषहों को समताभावपूर्वक सहन करते हैं । यही उनका परीषहजय कहलाता है। __ भूधरदास ने उपर्युक्त बाबीस परीषहों का अतिहदयग्राही, मार्मिक एवं मौलिक वर्णन किया है। इस वर्णन में उन्होंने एक ओर परीषहों का स्वरूप बतलाया है तथा दूसरी ओर इन परीषहों को सहने वाले मुनिराजों की स्तुति की है, गुणानुवाद गाया है । परीषहजयी मुनिराजों के प्रति भक्ति प्रदर्शित की है। भूधरदास के अनुसार 22 परीषहों का वर्णन निम्नलिखित है क्षुधा परीषह ( भूख की बाधा सहना) - अनशन, ऊनोदर आदि तप करते हुए दिन, पक्ष, महीने व्यतीत हो जाते हैं। योग्य आहार की विधि का योग नहीं बन पाता है। सम्पूर्ण शरीर के अंग शिथिल हो जाते हैं, फिर भी साधु दुस्सह भूख की वेदना को सहन करते हैं। रंच मात्र भी झुकते नहीं हैं अर्थात् दीनता नहीं दिखाते हैं। ऐसे साधु के चरणों में हम प्रतिदिन हाथ जोड़कर सिर झुकाते हैं। पिपासा परीषह ( प्यास की बाधा सहना ) - प्रकृति के विरुद्ध पारणा होने पर प्यास की वेदना बढ़ जाती है । ग्रीष्म काल में जब पित्त काफी पीड़ित करता है, तब दोनों आँखें धूमने लगती हैं; ऐसे समय में मुनिराज पानी नहीं चाहते हैं, उस प्यास की वेदना को सहन करते हैं। ऐसे मुनिराज जगत में जयवन्तव” । __शीत परीषह ( ठण्ड की बाधा सहना ) • शीतकाल में सब लोग काँपने लगते हैं ! जहाँ वन में वृक्ष खड़े रहते हैं, वहाँ ठण्डी हवा से वृक्ष झुक 1. तत्वार्थसूत्र, उमास्वामी, अध्याय 9 सूत्र 9 तथा पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 4 पृष्ठ 32 2. पावपुराण, कलकता, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 32 3. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, पूघरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 32

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