Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
39 उत्तम आर्जव - जो मन में सोचता है, वही मुँह से कहता है, वही शरीर से कार्य करता है। जिसके हृदय में मायाचार नहीं होता है; उसके उत्तम आर्जक धर्म होता है अर्थात् मायाचार का न होना उत्तम आर्जव धर्म है।'
___ उत्तम सत्य - जो स्व-पर के हित करने वाले सत्यरूप अमृत की तरह वचन बोलते हैं । भूलकर भी झूठ वचन नहीं बोलना, सत्य है । वह सत्य धर्मरुपी वृक्ष का मूल है।
उत्तम शौच - जो परस्त्री और परधन से छल छोड़कर वास्तव में विरक्त होता है। जिसका हृदय सर्वांग रूप से शुद्ध होता है, उसको उत्तम शौच धर्म कहते हैं।
उत्तम संयम - जो मन सहित पाँचों इन्द्रियों को वश में रखता है, उन्हें रंचमात्र शिथिल नहीं होने देता है । त्रस और स्थावर जीवों की रक्षा करता है, उसके उत्तम संयम धर्म होता है।'
उत्तम तप - ख्याति, लाभ, पूजादि की भावना छोड़कर पाँच इन्द्रियों को दण्डित करना - वह अनशन आदि बारह प्रकार का जगत में साररूप तपधर्म कहा गया है।
उत्तम त्याग - संयम का पालन करने वाले, व्रतियों में प्रधान मुनिराज को चार प्रकार का उत्तम दान देना तथा दुष्ट ( बुरे) विकल्पों को त्याग करना बहुत प्रकार से सुख देने वाला त्याग धर्म है।
उत्तम आकिंचन - बाहर में बाह्य परिग्रह का त्याग और अंतरंग में ममत्व का अभाव उत्तम आकिंचन धर्म है। यह वास्तव में शिवपद देने वाला
उत्तम ब्रह्मचर्य - बड़ी स्त्री को माता के समान, छोटी को पुत्री के समान और समानवय वाली को बहन के समान मानते हुए जहाँ मन विकार रहित वर्तता है, उसे पूर्ण अर्थात् उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म कहते हैं।
1, पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 35 2. से 8. तक पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 35