Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
333 चिदचिदात्मक है । यह षड्द्रव्यात्मक विश्व अनादि अनन्त है, इसे न किसी ने बनाया है और न कोई इसका नाश कर सकता है, यह स्वयंसिद्ध हैं। ' विश्व का सर्नया गाण नहीं होता है, पात्र पनि होता है : गाइ गरिवर्तन कभी-कभी नहीं, अपितु निरन्तर होता है । यह विश्व परिवर्तनशील होकर भी नित्य है और नित्य होकर भी परिवर्तनशील है। सत् अर्थात् अस्तित्व द्रव्य का लक्षण है -
और वह अस्तित्व उत्पाद-व्यय-धौव्य से युक्त है। ' उत्पाद एवं व्यय परिवर्तनशीलता का नाम है और धौव्य नित्यता का। यह जगत द्रव्यदृष्टि से धौव्यरूप तथा पर्यायदृष्टि से उत्पादव्ययरूप है। 4 इस प्रकार जगत नित्यानित्यात्मक है। नित्य और परिवर्तन दोनों इसके स्वभावगत धर्म हैं। प्रत्येक पदार्थ सत् रूप होकर उत्पाद-व्यय-धौव्य से युक्त तथा गुण और पर्याय वाला होता है। गुण नित्य हैं और पर्याय अनित्य हैं।
इस विश्व में जाति की अपेक्षा जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल- ये छह द्रव्य हैं ; परन्तु संख्या की दृष्टि से जीव द्रव्य अनन्त हैं। पुद्गल द्रव्य जीव से भी अनन्त गुणे अर्थात् अनन्तानन्त हैं। धर्म , अधर्म और आकाश द्रव्य एक एक है तथा काल द्रव्य असंख्यात हैं।' अनेकान्त एवं स्याद्वाद :
प्रत्येक वस्तु (द्रव्य) अनंत धर्मात्मक होने से अनेकान्त है । यह अनेकान्त ही वस्तु का सच्चा स्वरूप है । ' इस अनेकान्तात्मक वस्तु (द्रव्य) को एक-एक नय की दृष्टिसे देखने पर वही अनेकान्त एकान्तरूप है। जो वस्तु प्रमाण की 1. जीवादिक ग्रह दरब सदीव । तिनसौं भरयो यथाषट बीव।
स्वयं सिद्ध रचना यह बनी। ना इस करता हरता धनी ॥ पाचपुराण, कलकत्ता अधिकार पृष्ठ 5 2. सत् द्रव्यलक्षणं- तत्त्वार्थसूत्र उमास्वामी अध्याय 5 पृष्ठ 29 3. उत्पादव्ययधोव्ययुक्तंसत्- तत्त्वार्थसूत्र उमास्वामी अध्याय 5 पृष्ठ 30 4. दरवदृष्टि सों घौव्य सरूप । परजय सो उपजत श्यरूप ।। जैसे समुद्र सदा थिर लसै । लहर न्याय उपजै अरु नसै ॥ पाश्वपुराण, कलकत्ता अधिकार पृष्ठ 5 5. गुणपर्ययवद् द्रव्यं- तत्त्वार्थसूत्र उमास्वामी अध्याय 5 पृष्ठ 38 6, लघु बेन सिद्धान्त प्रवेशिका- पं. गोपालदास बरैया पृष्ठ 14 7. अनेकान्त जिनमत विषे, कहे अधारथ रूप। दरम अनेक नयातमक, एक एक नय साधि | पार्श्वपुराण, कलकत्ता अधिकार 9 पृष्ठ 78