Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
जिनागम में सम्यग्ज्ञान की महिमा का वर्णन बहुत उपलब्ध होता है।' साथ ही आत्मज्ञान - रहित शास्त्रज्ञान, लौकिक ज्ञान एवं व्रत आदि की निरर्थकता के कथन भी अनेक प्रकार से मिलने हैं।' सम्यग्चारित्र -
आत्मस्वरूप में लीनता, स्थिरता या रमणता ही चरित्र है। चारित्र क्रिया या आचरणरूप है और चारित्र दो प्रकार का है- सकलचारित्र और देश चारित्र ।
चारित किरिया रूप है सो पुन दुविध पवित्र।
एक सकल चारित्र है दुतिय देश चारित्र ।। पापों की प्रणालियाँ पाँच हैं- हिंसा, झूठ चोरी, कुशील और परिग्रह - इनसे विरति का नाम भी चारित्र है। सम्पूर्ण पापों का सर्वथा त्याग सकल चारित्र है। सकल चारित्र का पालन मुनिराज करते हैं। सर्व पापों का एकदेश या आंशिक त्याग देशचारित्र है और इसका पालन गृहस्थ करते हैं
जहाँ सकल सावध, सर्वथा परिहरै। सो पूरन चारित्र महामुनिवर धरै ।
1. (क) छहढाला-पं. दौलतराम, चौथी ढाल 45,7,8
(ख) नाटक समयसार - पं. बनारसीदास, निर्जरा दार छन्द ३ तथा 26 2. (क) कार्तिकेयानुप्रेक्षा • स्वामी कार्तिकेय, गाथा 464 (ख) अष्टपाहुड़ (मोक्षपाहुह) - कुन्दकुन्द गाथा 100 (TD योगसार - योगीन्दुदेव, श्लोक 43 (घ) समाधिशतक - पूज्यपाद, श्लोक 94 (ड) छहढाला - दौलतराम, चौथी दाल, छन्द 4 3. (क) स्वरूपे चरणं चारित्रम्' प्रवचनसार गाथा 7 की टीका अमृतचन्द्राचार्य कृत (ख) आपरूप में लीन भये थिर सम्याचारित्र सोई'
छहढाला, पं.दौलतराम, तीसरी ढाल, छन्द 2 4. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 9 पृष्ठ 85 5. हिंसान्तचौर्यम्यो मैथुन मैथुनपरिपहाभ्यां च ।
पाप प्रणालिकाभ्यो विरतिः संज्ञस्य चारित्रम् ॥ रत्नकरण्डश्रावकाचार - समन्तभद्राचार्य, श्लोक 49