Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
च्यारि अव्यभिचारी भावनि सूं सम्यक्त्व रत्न जाना जाइ है। क्रोधादि रहित समभावाकूं शांतभाव कहिए। कोमलतायुक्त भावनि को दयाभाव कहिये । धर्म, धर्म के फलविषै प्रीति होइ, तथा देह भोग सूं उदासीनता होइ, तिसै संवेगभाव कहिये । आप्त आगम पदार्थनि विषै नास्ति बुद्धि न होई, तिसै आस्तिक्यभाव कहिये । ये च्यारौ भाव कभी व्यभिचार नहीं । विकाररूप न होइ, यह सम्यग्दृष्टि का बाह्य लक्षण कह्या। ' शब्दशः उद्धृत है- “समयसार विषै श्री अमृतचन्द्रसूरि ने सम्यक्त्व यत्नसाध्य बताया है ।” “पश्य षण्मासमेकं" इति वचनात् । इस प्रकार सम्यक्त्व की प्राप्ति विषै छह महिने का वायदा किया तिसकी भाषा " एक छह महीना उपदेश मेरा मान रे"। अर "काललब्धि बिना नहीं" यह भी प्रमाण है। तहाँ दोनू कारणविषै दृष्टांत कहिए है। जैसे कोई धनार्थी पुरुष यथायोग्य उद्यम करें हैं, धन की प्राप्ति भाग्य उदय सों होइ है। तैसें पूर्ण उपायसूं उद्यमी होना योग्य है । सम्यक्त्व की प्राप्ति काललब्धिसौ होयगी अर जिस कार्य की लब्धि होनी है, तिस कार्य की सिद्धि उद्यम बिना होनी नाहीं । जब होयगी तब उद्यमसूं होयगी- यह नियम है जैसे भरतजी के ज्ञानोत्पत्ति विषै एक मुहूर्त बाकी रहा था तो भी दीक्षा ग्रहण किया, तब कार्य सिद्ध हुआ। इस प्रकार उद्यम कारण है। कारण बिना कार्य सिद्ध होता नहीं, यातै उद्यमी रहना । *
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सम्यग्दर्शन सम्पूर्ण धर्म का मूल है। सभी गुणरूपी रत्नों का कोश है। मुक्तिरूपी महल का सोपान हैं, इसलिए यह सबका सार है। इसके बिना सम्पूर्ण आचारण व्यर्थ है
सुन हस्ती शासन अनुकूल । सकल धरम को दर्शन मूल ॥ सब गुणरत्न कोष यह जान मुक्ति धारै हरघुर सोपान ॥ तातैं यह सब ही को सार या बिन सब आचरन असार ।।
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वह सम्यग्दर्शन निशंकित आदि आठ गुण सहित तथा शंकादि पच्चीस दोष रहित मोक्षरूपी वृक्ष के अंकुर के रूप में भव्य जीव के हृदय रूपी खेत में उत्पन्न होता है
शंकादिक दूषन बिना, आठो अंग समेत । मोख बिरछि अंकुर यह उपजै भवि उर खेत ||
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1. चर्चा समाधान, कलकचा, भूधरदास, चर्चा नं. 17 पृष्ठ 18 2. चर्चा समाधान, कलकत्ता, भूधरदास, चर्खा नं. 15 पृष्ठ 17 3. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 2 पृष्ठ 10
4. वही पृष्ठ 10-11