Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूषरदास
निमित्त होता है । अथवा जो स्वयं चलते हुए जीवों और पुद्गलों के चलने में सहायक (निमित्त ) है वह धर्मद्रव्य है ।
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अधर्मद्रव्य कथन - जिस प्रकार पथिक को ठहरने में वृक्ष की छाया निमित्त होती है; उसी प्रकार स्वयं ठहरते हुए जीवों और पुद्गलों के ठहरने में कारण अधर्मद्रव्य होता है। अथवा जो स्वयं ठहरते हुए जीवों और पुद्गलों को ठहरने में सहायक (निमित्त ) है, वह अधर्मद्रव्य है ।
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आकाशद्रव्य कथन जो सब द्रव्यों को अवगाहन (स्थान) देता है, वह आकाश द्रव्य है । वह आकाश लोक और अलोक के भेद से दो प्रकार का है। जहाँ जीवादि पदार्थ रहते हैं; वह असंख्यात प्रदेशवाला लोकाकाश कहलाता है । इसके बाहर अनन्त अलोकाकाश है। 3
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कालद्रव्य कथन असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश के एक एक प्रदेश पर एक- एक कालाणु रत्नों की राशि की तरह स्थित है। यह कालाणु हमेशा रहने वाला निश्चय काल द्रव्य है । वर्तना इसका लक्षण है और कभी इसका नाश नहीं होता है । समय, घड़ी, घण्टा आदि परिणमन लक्षण वाला व्यवहार काल है ।
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1. जब जड़ जीव चलै सत भाय, धर्म दरब तब करत सहाय ॥ यथा मीन को जल आधार, अपनी इच्छा करत विहार ॥ पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9 पृष्ठ 83
2. यों ही सहज कर चित होय, तब अधर्म सहकारी होय । ज्यों मग में पंथी को छाहिं, थिति कारन है मलसों नाहिं || पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 83
3. जो सब द्रव्यन को अवकाश, देय सदा सो द्रव्य आकाश । ताके भेद दोय जिन कहे, लोक अलोक नाम सरदहे || जहाँ जीवादि पदारथ वास, असंख्यात परदेश निवास | लोकाकाश कहावै सोय, परै अलोक अनन्ता होय ॥ पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9 पृष्ठ 83 4. लोक प्रदेश असंखे जहाँ, एक एक कालाणु तहाँ । रत्नराशिवत निवसै सदा द्रव्य सरूप सुधिर सर्वदा ॥ बरतावन लक्षण गुण जास, चीन काल वाको नहिं नाश । समय घड़ी आदिक बहुभाय, ये व्यवहार काल पर्याय ॥ पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 83
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