Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
सम्यग्दर्शन
जीवादि सात तत्त्वों का सच्चा श्रद्वान सम्यग्दर्शन है। ' तत्त्वार्थसूत्र में भी कहा है -“तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्।" 'सच्चे देव-शास्त्र-गुरु का श्रद्धान सम्यग्दर्शन है। 'अथवा जन्म मरणादि अठारह दोष रहित देव, अन्तरंग बहिरंग परिग्रहरहित गुरु और हिंसारहित धर्म का श्रद्धान सम्यग्दर्शन है । "आपा (स्व) और पर का यथार्थश्रद्धान सम्यग्दर्शन है। आत्मा का श्रद्धान सम्यग्दर्शन है।
सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए जीवादि सप्त या नव तत्वार्थों, ३१. शास्त्र-शुर के स्वरूप सिधा अद्धान तथा स्व-पर के भेदज्ञानसहित आत्मानुभूति भी अत्यन्त आवश्यक है । सम्यग्दर्शन के विभिन्न लक्षण उन्हीं में से किसी एक को मुख्य व अन्य को गौण करके बनाये गये हैं । यद्यपि प्रत्येक लक्षण में किसी एक को ही मुख्यरूप से ग्रहण किया गया है तथापि उसमें गौणरूप से अन्य सभी लक्षण गर्मित हो ही जाते हैं क्योंकि वे सभी लक्षण परस्पर में अविनाभावी हैं।
इस सम्बन्ध में पंडित टोडरमल “मोक्षमार्ग प्रकाशक* में लिखते हैं - “मिथ्यात्वकर्म के उपशमादि होने पर विपरीताभिनिवेश का अभाव होता है, वहाँ चारों लक्षण युगपत् पाये जाते हैं तथा विचार अपेक्षा मुख्यरूप से तत्वार्थों का विचार करता है, या आपापर का भेदविज्ञान करता है या आत्मस्वरूप ही का स्मरण करता है या देवादिक का स्वरूप विचारता है। इस प्रकार ज्ञान में तो नाना प्रकार के विचार होते हैं, परन्तु श्रद्धान में सर्वत्र परस्पर सापेक्षपना पाया जाता है। तत्त्वविचार करता है, तो भेदविज्ञानादि के अभिप्राय सहित करता है 1. चर्चा समाधान, पूधरदास, चर्चा नं. 2 पृष्ठ 5 2. तत्वार्थसूत्र अध्याय 1 सूत्र 2
रत्नकरण्डश्रावकाचार श्लोक 4 दोष अठारह वर्जित देव, दुविध संग त्यागी गुरु एव । हिंसा वर्जित धर्म अनूप, यह सरधा समकित को रूप ॥
पार्श्वपुराण अध्याय 1 पृष्ठ 10 5. मोक्षमार्ग प्रकाशक - पं. टोडरमल पृष्ठ 316 6. (क) पुरुषार्थसिद्धयुपाय श्लोक 216
(ख) अष्टपाहुड़ (दर्शनपाहुड़) कुन्दकुन्दाचार्य गाथा 20