Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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एवं न कहने की अपेक्षा नित्यानित्य अवक्तव्य है। 1 इस प्रकार स्याद्बाद क द्वारा नयविषक्षाओं के अन्तर्गव जीय जैनम में सिद्ध किया है। जो अन्य प्रकार से सिद्ध करते हैं उनके मत में अनेक दोष आते हैं।
जीव निरूपण :- जीव जीने वाला, उपयोगमय, कर्ता, भोक्ता, देहप्रमाण, संसारी, सिद्ध, अमूर्तिक और उर्ध्वगमन स्वभाव वाला है। जीव की सिद्धि हेतु ये नौ अधिकार कहे हैं । इनका विस्तार जिनागम के अनुसार निम्नलिखित है
जीवत्व-निश्चय से जो एक चेतन प्राण से जीता है और व्यवहार से आयु इन्द्रिय, बल और स्वासोच्छवास- इन चार प्राणों से जीता है, वह जीव है। पाँच इन्द्रियाँ, तीन बल, आय और श्वासोच्छवास - ये दश प्राण, चार प्राणों के उत्तर भेद हैं। मन सहित संज्ञी जीव के दश प्राण, मन रहित असंज्ञी के नौ प्राण, चार इन्द्रिय जीव के मन और कर्ण बिना आठ प्राण, तीन इन्द्रिय जीव के मन, कर्ण और चक्षु के बिना सात प्राण, दो इन्द्रिय जीव के मन, कर्ण, चक्ष और घाण के बिना छह प्राण, एकेन्द्रिय जीव के मन, कर्ण, चक्ष, घाण, वचन बल और रसना रहित चार प्राण होते हैं। मुक्त जीव के अस्तित्व, सुख, ज्ञानादि प्राण होते हैं। 4
उपयोगमयत्व- चैतन्य के साथ सम्बन्ध रखने वाले (अनुविधायी) जीव के परिणाम को उपयोग कहते है। उपयोग को ही ज्ञान -दर्शन कहते हैं। यह ज्ञान- दर्शन सब जीवों में पाया जाता है तथा जीव के अतिरिक्त अन्य किसी द्रव्य में नहीं पाया जाता है । इसलिए उपयोग जीव का लक्षण है। यह उपयोग दो प्रकार का है - ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग । ज्ञानोपयोग के आठ भेद और
1. दरवदिष्टि जिस नित सरूप । परजय न्याय अधिर चिद्रूप । नित्यानित्य कथंचित होयं को न जाय कथंचित सोय ।। नित्य अवाचि कथंचित वही। अथिर अवाचि कथंचित सही।
नित्यानित्य अवाचक जान । कहत कथंचित सब परवान॥ पालपुराण, पृष्ठ 78 2. इहि विधि स्याद्वाद नय छाहिं । साधो जीव जैनमत ताहि ।। __ और भांति विकलप जे करें । तिनके मत दूषन विस्तरें॥ पार्श्वपुराण, पृष्ठ 78 3. जीव नाम उपयोगी जान, करता भुगता देह प्रमान।।
जगतरूप शिवरूप अनूप, ऊरधगमन सुभाव सरूप ॥ पावपुराण, पृष्ठ 78-79 4. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 9 पृष्ठ 79 5. सर्वार्थसिद्धि अध्याय 2 सूत्र 8 की टीका 6. 'उपयोगो लक्षणम्' - तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 2 सूत्र 8