Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास :
अनुप्रास - कविता में ध्वन्यात्मकता और संगीतात्मकता के लिए अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हिन्दी में आरम्भ से ही हुआ है। कवित्तों और पदों की शैली में अनुप्रास अलंकार की छटा वस्तुतः दर्शनीय है । अलोच्य कवि भूधरदास ने भी कवित्तों, सवैयों और पदों में अनुप्रास का उपयोग स्वच्छन्तापूर्वक किया है। जिनवाणी और मिथ्यावाणी में तुलनात्मक विवेचन में अनुप्रास का व्यवहार द्रष्टव्य है।
पुनरुक्ति प्रकाश • भावोत्कर्ष और भाषा में शक्तिमत्ता की स्थापना के लिए कवि द्वारा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का व्यवहार हुआ है । शब्दों की पुनरुक्ति तथा पदांशों की पुनरुक्ति का कवि द्वारा उपयोग हुआ है।
___ यमक • शब्दालंकारों में यमयक अलंकार का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इस अलंकार के व्यवहार में कवि की भावगत बारीकी तथा विचारगत बौद्धिक विलास के दर्शन सहज में ही हो जाते हैं। भक्ति भाव को व्यक्त करने में यमक का प्रयोग भूधरदास द्वारा हुआ है।
उपमा - कवि द्वारा उपमा अलंकार के प्रयोग में नवीनता की स्थापना हुई है। उदाहरणार्थ-गर्भस्थ बाल भगवान की उपमा मोती से, न्हौनसंस्कार के समय बाल पाशवकुमार की उपमा नीलाचल से तथा बुढ़ापे में बाल पकने तथा कषायों के बने रहने की बगुला से उपमा देकर अपने अभिप्रेत अर्थ को पूर्ण
1. जैनशतक छन्द 16 2, (अ) घोर वन घोर घरा चहु ओर डोरे ज्यों त्यों
चलत हिलोरें त्यों त्यों फोरें बल ये अरे ॥ जैनशतक भूधरदास छंद 13 (आ) या विधि संत कहे पनि हैं, धनि हैं जिन बैन बड़े उपकारी ॥
जैनशतक भूधरदास छंद 15 3.(अ) जनन जलधि जलज जल यान एक छन । जैनशतक छप्पय 8
(आ) कानन कहा सुने यो कानन जोग लीन जिनराज खरे हैं। जैनशतक छंद 3 4. यथा सोप सम्पुट विषे मोती उपजे आन, त्यों ही निर्मल गर्भ में निराबाध भगवान ।
पार्श्वपुराण पृष्ठ 46 5. नीर वसन प्रभु देह पर कलश नीर छवि एम, नीचल सिर हेम के बादल बरसत जेम ।
पार्श्वपुराण पृष्ठ 52 6. सीस पयो बगुला सम सेत, रह्यो उर अंतर श्याम अजों ही । जैनशवक भूधरदास छन्द 31