Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास : (ख) पार्श्वपुराण में चरित्र-चित्रण चरित्र-चित्रण महाकाव्य का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है । पात्रों के चरित्र द्वारा ही कथानक विकास होता है या महत्त्व प्राप्त करता है । कथानक की दृष्टि से मुख्यत: पात्रों के दो भेद किए जाते हैं -
(1) प्रधान पात्र
(2) गौण पात्र जिन पात्रों से कथानक का मुख्य रूप से और सीधा सम्बन्ध होता है, जो कथानक को गति देते हैं या उससे विकास पाते हैं, उन्हें प्रधान पात्र कहा जाता है।
जिन पात्रों से कथानक का सीधा सम्बन्ध नहीं होता है और जो कथानक में प्रमुख पात्रों के साधन बनकर उपस्थित होते हैं, उन्हें गौण पात्र कहा जाता
प्रधान पात्रों में नायक, नायिका, प्रतिनायक प्रातिरायिका आते है । कथानक में सर्वप्रधान पात्र, जो आरम्भ से अन्त तक कथानक को अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर करता है, कथानक के सभी तत्त्व जिसे धुरी मानकर चलते हैं तथा जिसे फलप्राप्ति होती है, वही उसका नायक होता है। इन्हीं गुणों से युक्त प्रधान स्त्री-पात्र को नायिका कहा जाता है। सामान्यत: नायक की पत्नी या प्रेयसी नायिका होती है, परन्तु यह आवश्यक नहीं है। इसी तरह कथानक में नायक
और नायिका इन दोनों का एक साथ होना भी आवश्यक नहीं है। नायक के लक्ष्य प्राप्ति के प्रयत्नों में कुछ सहायक और कुछ बाधक होते हैं, इन्हें प्रतिनायक या खलनायक तथा प्रतिनायिका या खलनायिका कहते हैं।
इनके अतिरिक्त अन्य पात्र भी होते हैं, जिनका सम्बन्ध आधिकारिक कथा से उतना घनिष्ठ नहीं होता और जिनका प्रवेश प्रधान पात्रों के साधन के रूप में होता है। इन्हें गौण पात्र कहा जाता है। इनकी आवश्यकता वातावरण की गम्भीरता कम करने, कथानक को गति देने, अन्य पात्रों के चरित्र को प्रकाश में लाने आदि के लिए होती है ।