Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकाव्येतर रचनाओं का भावपक्षीय अनुशीलन
भूधरसाहित्य गद्य और पद्य दोनों में रचित है। गद्य में मात्र " चर्चा समाधान" और पद्य में "पार्श्वपुराण", "जैनशतक", " पदसंग्रह " एवं अनेक प्रकीर्णक रचनाएँ हैं । " पार्श्वपुराण" महाकाव्य है। पार्श्वपुराण का महाकाव्यात्मक मूल्यांकन एवं उसकी अन्य सभी विशेषताओं का विस्तृत विवेचन किया जा चुका है।' जैन शतक, पदसंग्रह आदि मुक्तक काव्य के अन्तर्गत समाहित होकर महाकाव्येतर रचनाएँ मानी जा सकती हैं। अत: इन्हीं रचनाओं का भावपक्षीय अनुशीलन विवेच्य है ।
मुक्तक का अर्थ (परिभाषा) एवं विशेषताएँ
मुक्त शब्द में कन् प्रत्यय के योग से उसी अर्थ में मुक्तक शब्द बनता है, जिसका अर्थ होता है- अपने आप में सम्पूर्ण अन्य निरपेक्ष मुक्त वस्तु । 2 इसी मूल अर्थ से मिलती जुलती परिभाषाएँ अनेक काव्य शास्त्र के आचार्यों ने दी हैं ।
मुक्तक का उल्लेख आचार्य दण्डी ने अपने काव्यादर्श में भी किया है। काव्यादर्श के प्राचीन टीकाकार तरुण वाचस्पति ने अपनी टीका में मुक्तक का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है- "मुक्तक एक ऐसा सुभाषित होता है, जो इतर की अपेक्षा नहीं रखता।' "4 काव्यादर्श की अन्य टीका हृदयगंम के अनुसार- "मुक्तक वह श्लोक है, जो वाक्यान्तर की अपेक्षा न रखता हो ।"" बाबू गुलाबराय मुक्तक की परिभाषा देते हुए लिखते हैं- "मुक्तक काव्य तारतरम्य के बन्धन से मुक्त होने के कारण ( मुक्तेन मुक्तकम् ) कहलाता है और उसका प्रत्येक पद स्वतः पूर्ण होता है । "
1. प्रस्तुत शोध प्रबन्ध अध्याय 5
2. " तृतीयोद्योत लोचनम्"
3. मुक्तकं कुलकं कोशः संवातः इति तादृशः काव्यादर्श 1/13
4. "मुक्तकमितरानपेक्षमेकं सुभाषितम् " तरुण वाचस्पति
महाकवि भूधरदास :
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5. " मुक्तकं वाक्यान्तरनिरपेक्षो यः श्लोकः - काव्यादर्श, हृदयगंम टीका
6. काव्य के रूप बाबू गुलाबराय पृष्ठ 106
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