Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूधरदास ।
जिन वचन का कथन छन्द 33, सांसारिक कुशलता का वर्णन छन्द 36, बुढ़ापे का वर्णन छन्द 28, 29 एवं 38 से 42 तक हैं। ये सभी छन्द वैराग्य की उत्पत्ति एवं वृद्धि के निमित्त हैं।
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उपदेशपरक पद्यों में हितोपदेश की शिक्षा छन्द 25, बुढ़ापा एवं रोग आने के पहले आत्महित की प्रेरणा छन्द 26, मनुष्य भव की दुर्लभता एवं युवावस्था में धर्म करने की प्रेरणा छन्द 30-31, अभिमान निषेध छन्द 34, कर्त्तव्यशिक्षा एवं सच्चे देव, शास्त्र, गुरु, धर्म में प्रीति करने की प्रेरणा छन्द 44 से 46, षट्कर्म का उपदेश छन्द 48-49, सप्तव्यसन का निषेध छन्द 50 से 63 एवं गुजराती भाषा में शिक्षा छन्द 89 आदि हैं।
नीति परक पद्यों को व्यक्तिगत, पारिवारिक, प्राणीविषयक, सामाजिक, आर्थिक मिश्रित आदि अनेक नीतियों में विभक्त किया जा सकता है। उपर्युक्त वैराग्यप्रेरक एवं उपदेशपरक पद्य व्यक्तिगत नीति में समाहित किये जा सकते हैं। पारिवारिक नीति के रूप में सांसारिक सम्बन्ध छन्द 25, प्राणी विषयक नीति के रूप में पशुबलि निषेध छन्द 47, मांस निषेध छन्द 52, मद्यनिषेध छन्द 53, आखेट निषेध छन्द 55 हैं। सामाजिक नीति के अन्तर्गत वेश्यासेवन निषेध, परस्त्री निषेध, कुशील निन्दा, शील प्रशंसा छन्द 54 से 59 तक कुकवि और कुकाव्य निन्दा छन्द 64 से 66 तक, गुरु उपकार छन्द 68, दुर्जन कथन छन्द 79, विधाता से तर्क छन्द 80 शामिल हैं। आर्थिक नीति के रूप में जुआ एवं चोरी का निषेध छन्द 51 एवं 56, मिश्रित नीति के अन्तर्गत कषाय जीतने का उपाय छन्द 69, मिष्ट वचन छन्द 70, विपत्ति में धैर्य धारण करने का उपदेश छन्द 71, होनहार दुर्निवार छन्द 72, काल सामर्थ्यं छन्द 73-74, धन के सम्बन्ध में निश्चिन्त रहने का उपदेश छन्द 75, आशारूपी नदी 76, महामूद्रवर्णन छन्द 77-78, द्रव्यलिंगी मुनि का कथन एवं आत्मानुभव की प्रशंसा छन्द 90-91 आदि अनेक विषयों का वर्णन है।
इसप्रकार जैनशतक स्तुति, वैराग्य, उपदेश एवं नीतिपरक पद्यों का अभूवपूर्व ग्रन्थ है; जिसमें कवि ने इस सब भावों की सुन्दर अभिव्यंजना की है। संसार का एक विशेष दृष्टिकोण से, जो सत्य पर अवलंबित है, विश्लेषण किया है।